बे वजह बेचैनी : “Restlessness Without Reason”

बे वजह बेचैनी : “Restlessness Without Reason”

बेवजह बेचैनी

(Restlessness without Reason)

Story special

मैं जब भी बाँसुरी का रियाज़ करता हूँ एक छोटा बच्चा आकर मेरे हाथों से बाँसुरी छीनने लगता है  और फिर मैं उसको एक छोटी बाँसुरी दे देता हूँ तो वह मेरी तरह बजाने की कोशिश करता है। जब उससे वह नहीं बजती तो वह फिर मेरी छीनने लगता है, उसे लगता है  कि मैं भी ऐसी ही आवाज निकालूं।

 जीवन ऊर्जा ( Life Force)
जीवन का अर्थ ही है ऊर्जा, एक फोर्स, एक ताकत, एक लय बद्धता ऊर्जा की। ऊर्जा स्थिर नहीं हो सकती नहीं तो वह जड़ हो जाएगी। ऊर्जा का अर्थ ही है चेतनता, और मनुष्य इस धरती पर सबसे सचेतन जीव है क्योंकि उसके पास सोचने – समझने की  अथाह ताकत है । यही वजह उसको धरती पर बाँकी जीवों से परम बनाती है।
जैसे ही बच्चा चलने की कोशिश करने लगता है तब से मौत आने तक, वह चलते रहता है। और अगर कभी वह शारीरिक रूप से रुक भी गया तो क्योंकि उसके अंदर विचार की परम ताकत है, वह हमेशा ही विचारों में संलग्न रहता है। दुनिया में कोई भी और जीव इतना नहीं सोच सकता, इसीलिए कोई और जीव इस पृथ्वी पर विकास नहीं कर पाया जितना मनुष्य ने किया। आंखों से दिखने वाली ही नहीं बल्कि नहीं दिखने वाली चीजें भी खोज डाली। यही इसकी महानता भी है और दुर्भाग्य भी।
महानता इन अर्थों में कि जीवन आसान हो गया, सुख के साधन खोज लिए गए, रोग और इलाज खोज लिए गए। दुर्भाग्य इन अर्थों में कि जो  भी इसने खोजा, वही इसके विनास का कारण भी बन रहा है  जैसे कि अणु(Atom) और रसायन ( Chemicals)
 
छोटे से बच्चे की बेचैनी की वजह -:
एक छोटा सा बच्चा जो दूध पीने में आनाकानी कर रहा है, बेचैन है बहुत, मगर माँ कारण नहीं समझ पाती कि क्या हुआ है। जबकि सच यह है कि माँ ने कोई गर्म मसाले वाला, मिर्च वाला खाना खाया था जिसकी वजह से बच्चे को माँ का दूध पीकर मुहँ में छाले पड़ चुके हैं मगर वह बोल नहीं सकता और मां को एहसास नहीं हो पा रहा है। जिंदगी में यह भी एक बेचैनी की वजह हो जाती है कि हम वाद-संबाद नहीं कर पाते, शरीर में परेशानी है तो बेचैनी रहती ही है।
स्कूल जाने वाले बच्चे की बेचैनी-:
जैसे ही बच्चा सुबह उठता है , बहुत बेचैन है आज,
वजह पूछो तो कहता है कि स्कूल नहीं जाऊंगा।
किसी बच्चे ने कल उसके साथ लड़ाई कर ली, या आज उसका टेस्ट है उसको लगता है कि उसे कुछ याद नहीं है नंबर कम आये तो डाँठ पड़ेगी।
न जाने इस तरह की कितनी समस्याएं चल रही हैं । एक बात स्प्ष्ट है कि ये मन से परेशान है भूत में घटी हुई वो घटनाएं जिनसे ये दुखी हुआ है वह इसको फिर याद आ रही हैं , कल्पनाओं के चित्र बन रहे हैं इसके दिमाग में, और यह बेचैन है।
 
 बेचैनी भूत और भविष्य की कल्पनाओं से हैं-
मनुष्य की बेवजह बेचैनी का मुख्य कारण उसका भूतकाल में घटी हुई घटनाओं से है या भविष्य के बारे में सोचते रहने से है। जबकि सच यह है कि जो घटित हो चुका है वह तो हो चुका है लेकिन उसके अनुभव इसकी यादास्त में हैं । अगर वह अनुभव अच्छे हैं तो ज्यादातर तो मन उनको याद ही नहीं दिलाता क्योंकि वह खुशी का कारण भी हो सकते हैं लेकिन मन उन घटनाओं को बार-बार याद दिलाता है जो इसको दुखी कर गई थीं अब यह उनसे डरने लगा है कि कहीं ये फिर न घट जाएं ,और मजे की बात यह है कि बच्चे से लेकर बूढ़ा तक इसी बात से डर भी रहा है और बेचैन भी है जबकि सौ में से 90 मौकों में तो यह नहीं घटने वाली हैं।
वहीं दूसरी और अच्छी घटनाएं इसे याद तो हैं और यह चाहता भी होगा कि ये फिर हो जाएं लेकिन नकारात्मक सोच हर इंसान पर इतनी भारी हो चुकी है कि वह सोचता है यह बार-बार थोड़ी होंगी मेरी ऐसी किश्मत कहाँ। मगर वह दुखी कर देने वाली घटनाओं पर इसका ज्यादा विश्वास है कि वह घट सकती हैं।
यही मुख्यतः इसकी बेबजह बेचैनी , भय और डर का कारण है।
हमें यह समझना होगा कि इसका जिम्मेवार कोई और नहीं बल्कि हम ही हैं क्योंकि  हम  मन की कार्य करने की प्रणाली को नहीं समझ पा रहे हैं।
सच तो यह है कि हम में से अधिकांश लोगों ने तो कभी इस बावत विचार तक नहीं किया है कि यह जीवन किस प्रकार एक नदी के बहाव की तरह बह रहा है इसको अपनी तरह, अपने तरीके से चलाने का कोई भी प्रयास सफल नहीं होने वाला है।
जीवन ऊर्जा का बहाव-
जरा विचार तो करें कि क्या हम अपनी इच्छा से पैदा हुए हैं ? क्या हमारे पैदा होने में हमारा कोई चुनाव है कि हम इस घर में पैदा होंगे, ये हमारे माँ-बाप होंगे?
नहीं ! तो फिर क्या हम यह सोचते हैं कि ये जीवन हमारे हिसाब से चलेगा, या जो हम चाहेंगे वही होगा या होना चाहिए?  ये भी कभी नहीं होगा। और यही हमारी बैचैनी की असली वजह भी है।
हम अपना चुनाव कर सकते हैं, अपनी तरफ से पूरी मेहनत कर सकते हैं मगर रिजल्ट जो हम चाहेंगे वही होंगे इसकी कोई गारन्टी नहीं है। ये जो जीवन हमें मिला है इसकी एक नियति है, इसका एक लक्ष्य है जो बनाने वाले को ही पता है,
हम इस बहाव को रोक देना चाहते हैं या अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं, जब वह नहीं चलता तो हम बेचैन हो रहे हैं , दुखी हो रहे हैं।
न तो हमें यह पता है कि हमारे पैदा होने का क्या कारण है और न ही हमें यह पता है कि कब यह जीवन जिसको हम अपना मान रहे हैं ये हमसे छीन लिया जाएगा पर इसके बावजूद हम इसको अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि हमारी ऊर्जा ऐसे ही बनी रहे, हम जवान ही रहें, हमें कोई बीमारी कभी न आये, हमें लोग ऐसे ही इज्जत देते रहें, हम कभी न मरें, हमारा काम-धंधा ऐसे ही चलता रहे, हमें रोज अच्छा खाना मिलता रहे, लोग हमारी ऐसे ही इज्जत करें, आदि।
जबकि हमारे हाथ में कोई भी चुनाव नहीं है। सब कुछ पहले से ही हो चुका है फिर भी क्योंकि हमारे पास चुनाव करने की बाहरी स्वतंत्रता है, बाहर से हमको विकल्प दिखाई दे रहे हैं इसलिए हम सोचते हैं कि हम चुनाव कर रहे हैं जबकि हकीकत यह है कि हम चुन तो सकते हैं मगर वह वैसा ही होगा यह हमारे हाथ में नहीं है।
यही भरम है जो हमको भुलाए रखता है और कहता है कि तुम ही कर रहे हो नहीं तो कैसे होता। जबकि हकीकत यह है कि तुम नहीं थे तब भी हो ही रहा था।
 
सच्ची घटनाएं- 
एक व्यक्ति कितनी मेहनत करता है कि वह UPSC क्वालीफाई कर ले IAS, या कोई और सिविल सर्वेन्ट बन जाये लेकिन जब वह पास हो जाता है तो किस तरह से दबाव में आकर उसे नॉकरी करनी पड़ती है, यह हर सिविल सर्वेन्ट ही समझ सकता है और जानता है, लेकिन फिर भी जो नहीं बन पाए उनको लगता है कि पता नहीं उनके साथ कुदरत अन्याय कर रही है।
जबकि बहुत से लोग नॉकरी छोड़ रहे हैं, बहुत से लोगों को टेंशन में बीमारी लग चुकी है, बहुत से मनो-रोग से ग्रसित हो चुके हैं , कुछ लोग सुसाइड कर चुके हैं , शायद कोई भी नहीं है जो ये कह पायेगा दिल से की वह खुश है। लेकिन फिर भी मन हमेशा यही कहता है कि वह थोड़ा सा बेवकूफ थे नहीं हैंडल कर पाए, हम कर लेते । 
हम कभी भी जैसे भी हालात में हम हैं उसमें खुश नहीं होते । हमें यही लगता रहता है कि बाँकी लोग जिनके पास वो सब है जिसकी हम इच्छा करते हैं , सुखी हैं ।
यही हमारे बेबजह बेचैनी का कारण है।
आप किसी भी घटना के सम्बंध में थोड़ा विचार करेंगे तो पाएंगे कि वो व्यक्ति कितना मजबूर है मगर क्योंकि हम इतने सम्बेदनशील नहीं हैं और न ही हमारे पास देखने की(Observation) ताकत है इसलिए हमें नहीं महसूस होता है।
 न जाने अनगिनत लोगों ने जिन्होंने इस संसार में बहुत कुछ किया लेकिन अंत में अपने अनुभवों को ऐसा कह कर गए जो कि हमारे लिए एक सीख हो सकती है
जैसे बुद्ध को सिर्फ एक ही दिन एक मरे हुए आदमी को ले जाते हुए लोग दिखे और उनकी पूरी जिंदगी में कायापलट हो गई। सोचो ! कैसी चेतना रही होगी, वह तो राजा थे उनके पास क्या कमी थी, उनको क्या दुख था कि वह सब छोड़ कर जंगल चले गए? लेकिन यह भी एक बेचैनी ही है सब कुछ होने के बाद भी एक खालीपन है।
 हमें तो लेकिन कई बार मौत के दृश्य दिख चुके हैं  यहां तक कि हमारे घर में ऐसा घट चुका है लेकिन हमारे अंदर यह विचार पैदा नहीं हुआ कि कौन है जो बोल रहा है मेरे शरीर में, कौन है जो ये चल रहा है, खा रहा है। क्योंकि हमने वो भी देखा जो नीचे पड़ा है अब लेकिन बोलता नहीं है, हिलता नहीं है। तो वह कौन था जो कह रहा था मैं कर रहा हूँ।
हम घटनाओं को अनेक पहलुओं में नहीं देख पाते हैं यही हमारी अज्ञानता है।इसी वजह से हमें वास्तविक तथ्य नहीं दिखाई पड़ते और हम इतिहास से भी अपनी जिंदगी में कुछ नहीं सीख  पाते हैं।
 
सामाजिक ढांचे का निर्माण ( Construction of Social Structure )
क्योंकि ये चेतन भी है और विचारशील भी, यही वजह है कि ये कभी चुप नहीं बैठता। जैसे कि ऊपर इस बच्चे की कहानी है। यही वजह है कि मैं अक्सर सोचता हूँ कि कितने महान सोच वाले लोग होंगे वह जिन्होंने सामाजिक(social thinker) ब्यवस्था की नींव रखी। और कितने महान मनोवैज्ञानिक (psychologist) होंगे वो जिन्होंने यहां मनुष्य के कार्यकलापों को सुचारू रूप से चलाने के लिए अनुसंधान किये और उनको सामाजिक व्यवस्था में लागू करवाया जो आजतक एक नियम की तरह चल रही है।
एक छोटा बच्चा जैसे ही चलना शुरू करता है फिर वह रुकता नहीं, चाहे वह जितनी भी बार गिर जाए, और एक दिन दौड़ने लगता है । फिर तो वह हवा में फाइटर एयरक्राफ्ट उड़ाता है जिसकी कई सौ किलोमीटर प्रति मिनट की स्पीड है। ये सब ऊर्जा का कमाल है। इसी ऊर्जा को हम जीवन – शक्ति (life -energy- force)
कहते हैं।
 
स्कूलों की व्यवस्था ( Schooling)
सामाजिक व्यवस्थापकों ने इस बच्चे की जीवन – ऊर्जा को नियंत्रित तरीके से मार्गदर्शन देने के लिए स्कूल की व्यवस्था की जहां इसकी सोच का विकास होगा और इसकी ऊर्जा को एक दिशा मिलेगी। अब ये बच्चा स्कूल  भेजा जाने लगा जहां इसको सारे जरूरी विषय पढ़ाये जाते हैं ताकि इसको सभी प्रकार की जानकारी मिल  सके और इसका चहुँमुखी विकास हो सके। इसीलिए हाईस्कूल तक इसको सभी विषय पढ़ाये जाते हैं । स्कूल में इस तरह का ढांचा तैयार किया गया कि इसकी निरन्तर बहती हुई ऊर्जा को सभी जगहों पर लगाया जा सके। 45 मिनट की एक क्लास का पीरियड का यही मतलब है कि इस ऊर्जा को आप ज्यादा देर तक नियंत्रित नहीं कर सकते, अधिकतम 45 मिनट से 1 घण्टे के बाद ध्यान लगना मुश्किल हो जाता है तभी 45 मिनट का पीरियड बनाया गया।
 
आने वाले दिनों में इस पर हम और गहराई में (part-2)
में विचार करेंगे।
 
Spread the love!

"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़