बहती नदियां बिना बांध के : “Drifting rivers without Dam ( Hindi Poetry)

बहती नदियां बिना बांध के : “Drifting rivers without Dam ( Hindi Poetry)

बहती नदियां बिना बांध के

“Drifting River without Dam”

(Hindi Poetry)

 

बहता दरिया है ये
बह जाने दे
मत डाल लंगड़
उखाड़ खूटियों को
निरबाँध बह जाने दे

मिट्टी के नीचे
रंग दबे हैं
खट्टे-मीठे
स्वाद दफन हैं
जब उगना हो
उग आते हैं अपने से
कौन रोक सका है उनको

मिट्टी ही तो है
पर कैसे इतनी
सतरंगी दुनिया बन जाती है
बून्द ही तो है,
दूर शितिज में
कैसे इंद्र-धनुष
बन जाती है

बहते पानी को
आईना बनाकर
कब किसने श्रंगार किया है
बहता ही रहता है जीवन
यूं ही बेपरवाही में

“तूराज़” समुन्द्र तो
मिल ही जायेगा
“तू” तो तिरता ही जा
इस बहते पानी में।

                                      तूराज़…….✍️

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"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़

4 comments

  1. Turaaz says:

    Love to see the way you responded to my work, your appreciation always give me strength to create better content.
    Thanks ❤️❤️🙏