ओस की बूंद सा जीवन “Life is a Dew drop” (Motivational Thoughts)

ओस की बूंद सा जीवन “Life is a Dew drop” (Motivational Thoughts)

ओस की बूंद सा जीवन

“Life is a Dew drop” 

(Motivational Thoughts)

 

हर व्यक्ति को संसार में एक अच्छे मन की, विकसित सोच की, और मानसिक शांति और समृद्धि की तलाश में है। इस तलाश के लिए इस ब्रह्मांड में हर मनुष्य अपनी-अपनी तरह से प्रयासरत है। सबका एक अपना नियम है। एक अपना मकसद है। एक अपना जीवन जीने का तरीका है। एक अपना मंदिर है। पूजा का स्थान है। जहां बैठकर वह अपने को शुद्ध करने का प्रयास करता है। एक असीम शक्ति, जो उसे लगता है कि संसार में है और संसार को चलायमान कर रही है, उसको समझने की कोशिश करता है। अनेक अनेक नामों से उसको याद करता है। अनेक अनेक तरीकों से अपनी कल्पनाओं में उसके चित्र बनाता है। उनको अपने रहने की जगह में जो शुद्धतम स्थान है वहां विराजमान करता है।

कुछ लोग हैं जो उसको उस उर्जा को साकार रूप में देखते हैं। और कुछ लोग हैं जो उसको निराकार रूप में देखते हैं। कुछ थोड़े बहुत लोग हैं जो न तो साकार को मानते हैं और नहीं निराकार को। वह अपने को नास्तिक मानते हैं। लेकिन सभी लोग एक बात को स्वीकार करते हैं कि उनका जन्म और मृत्यु पर कोई बस नहीं है। वह न तो अपने मन के मुताबिक पैदा हो सकते हैं और नहीं अपने मन के मुताबिक मर सकते हैं। कोई उस उर्जा को एनर्जी कहता है तो कोई एटम कहता है। और कोई उसे साकार रूप में परमात्मा कहता है और कोई उसे निराकार रूप में शुन्य कहता है। मगर सभी की धारणा है कि कोई अलौकिक शक्ति है जो इस संपूर्ण सृष्टि को घुमा रही है और घुमा ही नहीं रही है बल्कि एक सूत्र में एक माला की तरह पिरोए हुए है।

सूरज, चंद्रमा, हवा, पानी, बादल, बारिश, ऋतु, धरती, आकाश, पाताल, सब जगह वह एक ऊर्जा निरंतर बह रही है। कहीं हम उसको अपनी आंखों से देख लेते हैं और कहीं वह नहीं दिखाई देती है। मगर जीवन यानि लाइफ जमीन के अंदर भी है। जमीन के बाहर भी है। आसमान में भी है। हवा में भी है और पानी के अंदर भी। यहां तक कि बर्फ के अंदर भी जीवन चल रहा है।

यह समस्त ऊर्जा की प्रक्रिया को ही हमने अलग-अलग तरीकों से देखा भी है समझा भी है और व्यक्त भी किया है मगर अब तक जमीन में बहुत थोड़े से लोग हुए जिन्होंने इस ऊर्जा को परम चैतन्य में अनुभव किया और हम साधारण मनुष्यों को समझाने की कोशिश की। हमें विधि देखकर उपदेश देकर यह बताने की कोशिश की कि इस असीम उर्जा को किस तरह से एक मनुष्य अपने अंदर प्रकट कर सकता है। महसूस कर सकता है। एक साधारण जीवन के लिए जो उठापटक चल रही है जो दुख और पीड़ा का अनुभव हो रहा है। अनित्य और नश्वर जगत में जहां हर वस्तु चलायमान है अपना रूप बदल रही है उसमें हमेशा के लिए खुशी और आनंद की बातें करना और उस भ्रम में फंस जाना है।

हम आनंद और खुशी कैसे खोज लेंगे इस नश्वर संसार में! जहां जन्म में भी बहुत दुख और तकलीफ हैं और जन्म से ही मरने का डर और भय सता रहा है। वहां हमेशा के लिए सांसारिक पदार्थों में खुशी और आनंद मिल नहीं सकता। क्योंकि वह सारी खुशी और आनंद भी नश्वर है। पल भर के लिए है। जो अभी है और अगले ही पल एक शबनम की बूंद की तरह, सूरज की पहली किरण में चमकती तो है हीरे मोती की तरह, और बहुत लुभावनी भी होती है। मगर अगले ही पल उस शबनम की, ओस की बूंद का गिर जाना खत्म हो जाना निश्चित है। यह घटना हम अपनी जिंदगी में रोज सुबह उठकर देख सकते हैं।

अगर कोई शबनम की बूंद यह सोचने लगे कि चमकती हुई दिनकर की पहली किरण में वह हमेशा के लिए रहेगी और लोगों के दिल जीत लेगी और आनंद और खुशी का अनुभव करेगी तो आप उस पर हसेंगे। उसकी नन्हे बच्चे की सी बुद्धि पर आपको दया और तरस आएगा। कि यह बूंद जिसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है। जो दूसरे के भरोसे से पैदा हुई है। और जिसकी मृत्यु सुबह की चमकती धूप में हो जाना निश्चित है तो आपको उस पर दया और करुणा आनी निश्चित है। क्योंकि आप उसके क्षणभंगुर जीवन को रोज सुबह देखते हैं। मगर वह बूंद देख नहीं पाती। न तो उसको जीवन की अनित्यता दिखाई देती है और नहीं अपनी असहाय अवस्था कि उसका उसके जीवन पर कोई बस नहीं। कोई कंट्रोल नहीं। कोई जोर नहीं।

इस तरह जो बुद्ध स्वरूप में प्रकट हुआ है हमारे समक्ष, वह हमारी जिंदगी को देखता है कि कैसे यह नन्ही सी ओस की बूंद इस बात से खुश हो रही है कि लोग सुबह-सुबह इसको मोती समझ रहे हैं। झूठे ही सपने देख रही है कि लोग उससे बहुत खुश होते हैं। यह झूठी आशा कि संसार में वह इसी तरह चमकती रहेगी और संसार के लोग इसी तरह खुश होंगे। यह झूठी भावना की तरह ही मनुष्य यहां जिंदगी जी रहा है। उसके जीवन में और शबनम की बूंद के जीवन में कोई फर्क नहीं। भले ही कोई शबनम की बूंद कितनी ही झूठी तसल्ली कर ले कि उसे बहुत लोग जानते हैं मगर अगले ही पल सूरज की तपिश लगते ही वह जमीन में खो जाएगी। दफन हो जाएगी। और उसका नामो निशान मिट जाएगा।

यही मनुष्य की सच्चाई है कि उसका जीवन एक शबनम की बूंद से ज्यादा नहीं है। हां उसका जीवन भले ही एक क्षण का नहीं हो। 50 साल, 100 साल का हो मगर वह एक सपने जैसा ही है। एक फर्क है जो उसे मनुष्य बनाता है वह है उसके अंदर जागृति की संभावना है। उसके अंदर अपने विचार की संभावना है। ताकि वह इस नश्वरता से ऊपर उठ सके। लेकिन वह अपने से जागता ही नहीं। सोचो! हमारा क्या अनुभव है! हम जाग गए हैं? बड़ी पीड़ा और दुख की बात तो यह है कि जो जाग गए, बुद्ध हो गए, जिन्होंने हमें अपना जीवन बदल कर दिखाया। उस परम निर्माण को पाया। उन्होंने हमें उपदेश दिया। हमें जगाने की कोशिश की और हमने क्या किया!

जरा सोचो! हम नहीं मानते उनकी। उनके सामने होने पर हम भला ही झूठा दिखावा करते हों।
मगर उनके शरीर छोड़ने के बाद हम उनकी एक प्रतिमा, एक तस्वीर, एक मूर्ति बना लेते हैं और हमारे लिए बहुत आसान हो जाता है कि उनकी साकार रूप में पूजा करें। मगर उनके वचनों की तरफ, उपदेश की तरफ हम कभी नहीं चल पाते। हम अपने मन की करते हैं। क्या किसी भी बुद्ध पुरुष ने कभी आपको किसी प्रतिमा की भक्ति, पूजा की बात की?
तो फिर हमने उनके जाने के बाद क्या किया! क्या हमें विचार की जरूरत नहीं! उनका उद्देश्य था कि अपने अंदर जाकर देखना है। अपने शरीर के अंदर की तरफ देखना है फिर हम बाहर क्या करने लगे?

यह विचार है जिस पर जरूर गहरे में मनन की आवश्यकता है। मैं तो यह भी देखता हूं कि जो कहता है कि बुद्ध ने सब नकार दिया वही बुद्ध की तस्वीर और प्रतिमा को रखता है। मैं बताता हूं क्यों? क्योंकि जिससे हम प्यार करते हैं उसको अपने मन से और शरीर की आंखों से हमेशा देखना चाहते हैं। यह भाव अच्छा है। मगर बुद्ध ने क्या कहा था? क्यों इतना विरोध किया था उस समय जब बाहरी पाखंड बहुत चरम पर था। दिखावा बहुत था। तभी उन्होंने उपदेश दिया था कि समस्त अवधारणाओं को मान्यताओं को अपने अंदर से निकाल दो। इनके ऊपर उठो। “बुद्ध कहते हैं कि मेरी कही हुई बातों को सुनकर मत मान लेना कि मैंने कहा है। इसलिए वह ठीक है। वह तुम्हारा अनुभव नहीं है अभी। तुम तो उन पर विचार करना। उनका अभ्यास करना। और जब अभ्यास के बाद वह तुम्हारा अनुभव बन जाए और तुम कह सको कि हां ऐसा ही है। यह मेरा भी अनुभव है। तभी मानना”।

लेकिन आज हम फिर अवधारणाओं में, मान्यताओं में उलझ गए हैं। बिना अपने अनुभव के ही उनको स्वीकार कर चुके हैं। और बड़े रहस्य की बात है कि आज हम असली टीचिंग से कितना दूर जा चुके हैं। बुद्ध ने करुणा, दया और संगति के लिए संघ बनाया आपसी भाई चारे से रहने की सलाह दी। सब को एक समान माना। उनके लिए राजा, प्रजा में कोई फर्क नहीं है। भिखारी में कोई फर्क नहीं है। हत्यारे में कोई फर्क नहीं है। क्या यह बात हमें नहीं सीखने की जरूरत है। फिर हम इतना फर्क क्यों करते हैं।

अध्यात्म में बिना, प्रेम के बिना, करुणा के बिना, दया के बिना मनुष्य की कोई प्रगति नहीं हो सकती। हमें इस कुदरत के साथ एक होना चाहिए। कुदरत की बनाई हुई सभी रचना के साथ एक सुर चाहिए। लयबद्धता चाहिए। और बिना ध्यान के, प्रज्ञा के, न तो कोई समझ जागती है। और नहीं कोई सच्चा प्यार जागृत होता है

समस्त बुद्ध पुरुषों ने हमें प्यार सिखाया। शांति का मार्ग बताया। मुक्ति का मार्ग बताया। निर्माण का मार्ग बताया। और हमने उनकी टीचिंग्स को अपने और पराए में तोड़ दिया। उसको खंडित कर दिया। आज हम ऐसे समाज का हिस्सा बन गए हैं जहां एक दूसरे के प्रति द्वेष है, नफरत है, ईर्ष्या है, जबकि बुद्ध ने बार-बार कहा कि भिक्षु द्वेष करने वाला नहीं होता। क्रोध करने वाला नहीं होता। भिक्षु ईर्ष्या और नफरत करने वाला नहीं होता। भिक्षुओं संयमित जीवन जीता है। सदाचारी होता है। नियम का पालन करने वाला होता है। और भिक्षु के लिए अपने पराए और अपने स्वार्थ के लिए कोई स्थान नहीं होता है।

हमें तो एक भिक्षु की तरह जीवन जीना होगा यह संसार, यह घर बार भिक्षु का नहीं होता। वह तो घर छोड़कर निकलता है। और जब उसके अंदर भावनाएं उठती हैं। राग रंग उठता है संसार का। मोह उठता है तब वह अपने से भावना करता है कि उसने तो घर छोड़ा है। और अब यह राग रंग का विचार क्यों उठता है? संसार में रहकर ही संसार से ऊपर उठना है। जिस तरह एक कमल का फूल होता है। उसकी जड़ें, पत्ते, तना आदि पानी में और कीचड़ में सना होता है। मगर फूल कीचड़ और पानी से ऊपर उठता है। इसी तरह एक आध्यात्मिक व्यक्ति संसार से भागता नहीं, संसार में ही रहता है। मगर संसार रूपी कीचड़ में नहीं फंसता है। कमल वत रहता है। कीचड़ से ऊपर रहता है। किसी भी आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए एक गहरे में अवलोकन की।

अपने अंदर झांकने की आवश्यकता है। और यह आवश्यकता है कि बिना आंतरिक रहस्य का अभ्यास किए जीवन में आध्यात्मिक खुशबू आ नहीं सकती। आध्यात्मिक अभ्यास कोई एक-दो दिन की बात नहीं है। सर्वत्र जीवन को न्यौछावर करने की आवश्यकता है। अपने अहंकार को मारने की आवश्यकता है। Realisation चाहिए कि यह गलत है। और यह ठीक है। बुद्ध का मार्ग कठिन है उन लोगों के लिए जो बाहरी दिखावा और संसार में रस लेना चाहते हैं। क्योंकि बुद्ध तो स्पष्ट करते हैं कि बाहरी पूजा से, बाहरी पठन पाठन से बाहरी ज्ञान से सुख चाहते हो तो यह हो नहीं सकता। और अंत में बहुत पश्चाताप और दुख होता है फिर भी खोज अपने में ही करनी होती है।

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"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़