विपश्यना ध्यान में “ईर्यापथ” “Iriyapath in Vipashyna Meditation” (Buddha Motivation)

विपश्यना ध्यान में “ईर्यापथ” “Iriyapath in Vipashyna Meditation” (Buddha Motivation)

विपश्यना ध्यान में “ईर्यापथ”

“Iriyapath inVipashyna Meditation”

 

(Buddha Motivation)

 

विपश्यना ध्यान में ईरियापथ एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। विपश्यना ध्यान की शुरुआत होती है आनापान स्मृति योग जिसे आनपान सती भी कहते हैं।

 

आनापान स्मृति में हम अपनी आती जाती सांस जो कि कुदरत जन्य तरह से चल रही है उसको सिर्फ देखते रहते हैं। अर्थात अपने मन को बाहर की समस्त गतिविधियों से खींचकर अपनी आती जाती सांस को देखने में लगा देते है। हम अपनी तरफ से न तो सांस लेते हैं और न ही छोड़ते हैं बल्कि एक दृष्टा की तरह सांसों को आते जाते हुए अनुभव करते हैं।

 

जब हमारा मन आनापान स्मृति योग में शांत हो जाता है रुकने लगता है, थोड़ा ठहर जाता है तब हम विपश्यना शुरू करते हैं। विपश्यना को हम चार भागों में करते हैं – कायानुपश्यना, वेदनानुपश्यना, चित्तानुपश्यना, धर्मानुपश्यना।

 

कायानुपश्यना करते समय हम इरियापथ का सहारा ले सकते हैं। इसमें हम अपनी शरीर की हरकतों को बैठते हुए, चलते हुए, सोते हुए, खड़े हुए महसूस करते रहते हैं कि शरीर में किस तरह की हरकतें चल रही हैं। शरीर में उठती हुई वेदनाओ को, तरंगों को, उठते हुए और खत्म होते हुए देखते रहते हैं।

 

ईरियापथ का अर्थ ही है कि शरीर में हरकतों का होना। जो भी हरकत शरीर करता है चलायमान होने के साथ ही, उन सब हरकतों को गहरे में देखना ही इरियापथ है।

 

इरियापथ की साधना में हम स्लो वॉक कर सकते हैं। सोते हुए दाहिनी करवट में लेटकर हम इरियापथ कर सकते हैं और खड़े होकर भी हम इरियापथ के दौरान शरीर में उठ रही वेदनाओं को देख सकते हैं, विपश्यना कर सकते हैं।

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"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़