विश्व पर्यावरण दिवस “World Environment day” (Hindi Poetry)

विश्व पर्यावरण दिवस “World Environment day” (Hindi Poetry)

विश्व पर्यावरण दिवस

“World Environment day”

(Hindi Poetry)

 

जब सांसें हैं तन में

“मैं” जीवन ऊर्जा की उस

धड़कन को सुन पाता हूं

जब मन में घनी शांति हो

तब मैं स्थिति प्रज्ञ हो जाता हूं

 

जीवन की आपाधापी ने

धुंए और गहन शोर ने

कुदरत को आघात किया है

मानव जीवन को बर्बाद किया है

 

अब भी जीता हूं मैं

नीरस सा निष्प्राण हुए

न खुशी है न शांति कहीं

न हवा, न शुद्ध पानी है

दुर्गंध मन में, विचारों में

दिन दिन बड़ती ही जाती है।

 

युग बदला है

मानव बदला है

मन पर भौतिकता का

जुगुनू जगमग जगमग

करता ही जाता है।

 

रुग्ण हुआ जीवन मानव का

प्रदूषित हुआ तन,

मन, और प्राणों में

खाली खाली नीरस सा

कोल्हू में चलता बैल सा

गोल गोल घूमे जाता है।

 

जेब भरी है पैसों से

पर मन, तन दौड़े जाता है

जहां भी उसका भौंरा मन

रुकता है क्षण भर को

वहीं प्रदूषण कर आता है

कहीं धुंए का, कहीं जुबां का

कहीं शोर शरावे का

कहीं प्लास्टिक, कहीं रोमांटिक

कहीं शराब, गांजा, अफीम का

 

मन, तन रुकता ही तब है

जब जीवन में

“उत्तरदायित्व” प्रबल हो

मैं हूं, क्योंकि कुदरत है

बिना इसके

मेरा अस्तित्व नहीं

यही भाव पूजा है

प्रार्थना है, सबकी

मंगलकामना है और

मैं, मेरे का भाव नहीं

 

“तुराज़” को खुद को

बदलना होगा

पर्यावरण को शुद्ध, और

स्वच्छ रखना होगा,

कुछ अपनाना होगा,

कुछ को त्यागना होगा

तब संभव रूपांतरण होगा।

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"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़

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