जीवन में क्या पाया? “What did you get from Life” (Hindi Poetry)

जीवन में क्या पाया? “What did you get from Life” (Hindi Poetry)

जीवन में क्या पाया ?

What did you get from Life”?

(Hindi Poetry)

एक सपना सा था शायद!
मैं आया था जगत में
एक खेत और कुछ बीज लिए,
खेत के उस पार से आ रही
वीणा की धुन सुनता था रोज में

विस्मय सा था! और अचरज भी!
आनंदित हो मुस्काता भी था,
हाथ पांव झटकता था पालने में
रंग बिरंगी चिड़िया आती,
कोई रंग बिरंगी तितली आती,
मैं जोर लगाता, हाथ बड़ाता
खो सा जाता था उनमें।

खेत मेरा साफ सुथरा सा
फसल के लिए तैयार हुआ,
मां ने उसमें, सबसे पहले
कुछ खिलौनों के पेड़ लगाए
मैं मुस्कुराता, खेलता, फेंकता,
उखाड़ता फिर लगाता,

न जाने कब नर्सरी सी बन गई उसमें
मैं बड़ा हुआ, मेरा खेत बड़ा, फैला
वट वृक्ष भी हैं अब, देवदार के लंबे पेड़ भी
घने-घने कैक्टस जिनमें
सुंदर फूल खिले हैं

दुनिया में जो जो भाता मुझको
मैं लाता और लगाता उसमें
कई और खेत जुड़े
कई और पेड़ लगे
रोज फैलाता, रोज बढ़ाता

मैं अचरज में हूं अब!
कई शेर, कई चीते, कई अजगर
और सांपों का डेरा है अब उसमें
न जाने कहां से आए होंगे
शायद मैंने ही बोए होंगे..

मैं खुद भी डरता हूं,
अंदर जाने से अब
फिर भी मंद मंद मुस्काता हूं,
झांकता हूं, कैक्टस के फूलों में
मेरा कोरा, खेत था कभी
अब मेरा संसार बन गया

लेकिन वह सुर खो गया
जो तब सुनता था रोज में
कोई मेरा अपना
मुझे उस पार से
आवाज लगाता था शायद,
बुलाता था शायद!

काश! मैंने कोई पगडंडी गड़ी होती
मैं कदम कदम, उस पर चलता
सुर को पकड़ता, साधता रहता
पहुंचता उन हाथों तक

जो छेड़ रहे हैं
अविरल वीणा की तारों को
नाचता भी मैं , गाता भी मैं
फिर खो जाता उस आनंद में
उस परम आनंद में।

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"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़

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