प्यार तो परमात्मा है : “Love is Divine” ( Hindi Poetry)

प्यार तो परमात्मा है : “Love is Divine” ( Hindi Poetry)

प्यार तो परमात्मा है

“Love is Divine”

(Hindi Poetry)
प्यार-प्यार, क्या है ये प्यार?
प्यार तो सब-कुछ ही है यार
फिर प्यार के नाम पर इतनी तकरार !
लड़ाई-झगड़ा, कोर्ट-कचहरी, जान-मार,
धोखा-व्यापार, क्या यही है प्यार?
क्या बीमारी है ये प्यार?
मैं और तू की लड़ाई है प्यार !
प्यार कोई समझौता तो नहीं
प्यार कोई जुबानी तो नहीं
प्यार जवानी-बुढ़ापा तो नहीं
लेन-देन, सौदा-व्यापार, नहीं है प्यार
किसी को हाट-हवेली से प्यार
गहने-सोने-चांदी से प्यार
कुत्ते-बिल्ली, जूते-चप्पल से प्यार
बच्चे नाम-कमाएं, दुनिया-भर में धूम मचाएं
क्या ये कामना है प्यार
फिर जब कुछ अनहोनी हो जाये
परमात्मा पर ही गरियाएँ
ये कौन सा है प्यार!
क्या इसको ही कहते हैं प्यार?
जब कोई मिल जाये
पीर-पैगम्बर, गुरु-ज्ञानी, संत-महात्मा
जो तो मन्नत पूरी हो जाये, तो वो परमात्मा
नहीं तो सब धोखा, झूट-फरेब, प्रेतात्मा
क्या यही है प्यार ?
अपना-पराया, मोह-माया, देह-व्यापार
लालसा, सहारा, नहीं है प्यार
उस हाथ दे, इस हाथ ले ये
भिखमंगों का खेल नहीं है प्यार
सागर को चम्मच में भर पाया है कोई !
क्या प्यार का रिश्ता-नाता,
निभा पाया है कोई
प्यार-प्यार
ये नहीं, वो नहीं
तो फिर क्या है प्यार ?
प्यार,  इन सब से है पार
फल का पेड़ है प्यार
न कोई तकलीप पत्थर लगने की
न पंछी के कच्चे फल चखने की
खा ले जानवर कोई पत्ते
कुचल डालें कोई बच्चे
तोड़ लें, फूल-पत्ते राह चलते
फल-फूल, मधु-गंध लुटाता
दुनियां में फिजा को महकाता
चिड़ियों को चहकाता, घोंसला-आसरा देता
कितने कीट-पतंगे रहते, पंथी को भी छाया देता
न अंधड़ में गिर जाने की अड़चन
प्यार तो परमात्मा है
बनाता ही जाता, देता ही जाता
अहो-भाव रहे, तो प्यार बचा रहे
नहीं तो, सौदागरों की भेंट चढ़ जाता है प्यार
कभी कोई बिरला ही
धन्य हो पाता है, पाकर प्यार
प्यार-प्यार
क्या देखा भी
जाता है प्यार ?
जिसको भी मैं करता हूँ प्यार
उससे मिलना चाहता हूं यार
माँ का बच्चे से है प्यार पर
जब माँ बच्चे में ही घुल- मिल जाय,
माँ है प्यार, जब मैं- मेरा- मोह न हो
नर्तक का नृत्य से है प्यार पर
जब नर्तक नृत्य ही बन जाय,
 तो नृत्य ही है, प्यार ही प्यार
मजनू को लैला से प्यार, पर
जब मजनू ही लैला बन जाय
तो प्यार ही प्यार, बस प्यार ही प्यार
संगीत है प्यार, जब संगीतज्ञ न हो
लेख है प्यार, जब लेखक न हो
कृति है प्यार, जब कृतक न हो
सूर्य, चंद्र, हवा, तारा मंडल,
धरनी-आकाश-पाताल
सब देते ही तो हैं, बिना जांच-पड़ताल
लेन-देन है प्यार, जब लेने-देने वाला न हो
प्यार-प्यार, यही है प्यार
प्यासे को पानी, भूखे को खाना, पर ” मैं ” न आना
मैं और तू को छोड़, ये है प्यार
बायाँ हाथ दे, दायाँ न जाने, ये है प्यार
जब द्वैत चित्त, एक हो जाय, तो है प्यार
स्त्रैण चित्त-पुरुष चित्त, मिल जाये अंतरतम में
 तब जानोगे तुम, क्या होता है प्यार
शिव-शक्ति मिल एक हो जाएं
राधा-कृष्ण, सीता-राम मिल जाएं
गुरु-शिष्य, सन-फादर, मिल जाएं
तब जानोगे तुम, क्या होता है प्यार
है कहीं दुनिया में ऐसा प्यार ?
ये जगाना पड़ता है यार
तभी जप-तप, संयम-नियम
निर्मलता-सजगता, ब्रह्म-आचरण
ध्यान-योग-साधना, की जाती है यार
 तब जगता है प्यार
परमात्म-प्यार, प्यार ही प्यार
इसको कल्पना, मत समझना यार
ये करके दिखाया है, उन महापुरुषों ने
जिनको तुम पूजते हो, अब यार
इसको कहते हैं प्यार, ये है सच्चा प्यार
तब रास-लीला पैदा होती है यार
बस प्यार ही प्यार, कुछ भी दूजा नहीं यार
नहीं तो जानो संसारी-प्यार
जो सपना-संसार दिखाए,
कुछ जोड़े-तोड़े और बनाये
ये है मात्र-मात्र और मात्र संसारी प्यार
सब इसमें ही, धोखा खा जाते
समझ कर प्यार, ये बन जाता है अपना संसार
जब अंश-मात्र भी प्यार,
कभी अंतरतम में, तुम्हारे जग पायेगा
तब तुम्हें भी, ” तूराज़ ” का पता लग पायेगा,
वह भी है प्यार, प्यार बस प्यार ही प्यार
मैं न कृत्य हूँ न कर्ता
मैं जिश्म नहीं, मन नही, चित्त नहीं
मैं साँस नहीं, मैं कुछ भी नहीं
सब प्यार ही प्यार,
अहो-भाव, सर्व-स्वीकार
प्यार है सगल संसार
स्वयं-भू, स्वयं-करतार
करतार ही है प्यार
प्यार ही है करतार
                                       “तूराज़”…….✍️
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"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़

4 comments

  1. Turaaz says:

    Thanks dear Reader
    I m very thankful for your valuable admiring words.
    ❤️❤️🙏🙏