आत्म-रुप में जीवन
(Life in Self)
Hindi Poetry
जब आत्मा ही न हो तुममें
तो तुम श्रृंगार करोगे कैसे
कर भी लो भला
तो तुम जचोगे कैसे
गर ज्योति जगी हो ह्रदय में
संवेदित हों रोम रोम तुम्हारे
कोमल ह्रदय, मधुर काया
प्यार दुलार, मर्म भाव हो
कुदरत की काया पर गर्व न हो
मैं, मेरा, अभिमान न हो
तब तुम जानोगे बिन श्रंगार किए
तुम्हें श्रंगारित कर, प्रकृति ने
पंचभूत की काया में
तुमको हर्षित-सुशोभित कर
प्राणदान दिया,
पुष्प समान हो कुदरत के तुम
तुमको उसने यह जीवन
महा-दान दिया
कुछ करने को है मिला ये जीवन
इसका तुमको भान कहां
व्यर्थ ही पानी को मथकर
कब किसको माखन भोग मिला
संसार की नश्वरता को
जिसने मन से समझ लिया
माया, मोह की अग्नि में
झुलसकर भी जो निकल गया
कोई बुद्ध हुआ होगा ऐसा
जिसने जीवन की आशा, तृष्णा को
भरी आंख पहचान लिया
प्रज्वलित कर सको दीपक को
तुम अंतरतम में अपने
तब तिमिर मिटे, अज्ञान छटे
मुक्त पवन में, भव सागर से ऊपर
तुम ऐसी उड़ान भरो
मुक्त कंठ से जीवन-मुक्ति का
सब जग में गुणगान करो।
Turaaz…..
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