सच जो कभी नहीं बदलता
“Truth never changeS”
(Story Special)
“आनन्द” जो कि एक बहुत अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद विदेश में नौकरी करने लगा।
कुछ वर्षों के बाद उसके मां बाप ने उसकी शादी कर दी और वह मां बाप को साथ लेकर अच्छे दिन बिताने लगा। वह अपनी जिंदगी में बहुत खुश था। तभी एक बुरी खबर आई कि उसके पिताजी को दिल का दौरा पड़ गया है। यह खबर जैसे ही उसकी मां ने सुनी उसको भी दिल का दौरा पड़ गया और उसके मां और बाप, दोनों की ही मौत हो गई।
वह अपने मां बाप को बहुत प्यार करता था इस वजह से उदास भी रहने लगा। कुछ समय पश्चात उसके घर में एक के बाद एक दो बेटों का जन्म हुआ। धीरे धीरे वह अपनी पुरानी खुश भरी जिंदगी में लौट आया था। उसने अपने मां बाप के नाम पर एक उद्योग भी खोल लिया और देखते ही देखते वह देश के अमीर व्यक्तियों में गिना जाने लगा।
उसके दोनों बेटे उसकी ही तरह कुशाग्र बुद्धि के थे। दोनों ने अच्छी पढ़ाई की और विदेशों में अपने पिता का कारोबार भी फैला दिया। वह दोनों बेटे विदेश में ही रहते थे। एक दिन दिवाली पर उन्होंने घर आने का मन बनाया और दोनों बेटे एक ही देश में इकट्ठे हुए । स्वदेश आने के लिए उन्होंने एयरपोर्ट के लिए टैक्सी ली। तभी रास्ते में उनकी कार, दुर्घटना ग्रस्त हो गई और दोनों भाइयों की तत्काल मौके पर ही मौत हो गई।
कहां मां बाप बहुत खुश थे कि बच्चे कई साल के बाद दिवाली पर लौट रहे हैं । लेकिन सब कुछ मातम में बदल गया। जैसे ही दोनों बेटों की बॉडी आई, मां से देखा ना गया और उसको भी दिल का दौरा पड़ गया और उसकी भी मौत हो गई।
अब “आनंद” के जीवन में अंधकार छा गया। उसका कारोबार में ध्यान न होने की वजह से कारोबार भी डूब गया। अब कारोबार में लिए गए बैंक लॉन को भरने के लिए उसने अपना सब कुछ बेच दिया मगर बैंक लॉन का कुछ भाग अभी भी दिया ना जा सका।
उसकी निराशा बहुत गहरी हो चुकी थी और शरीर भी जवाब देने लगा था कि तभी पड़ोस के शर्मा जी ने उसको कहा कि आप इधर नजदीक में ही एक आश्रम है, वहां जाया कीजिए आपके मन को शांति मिलेगी।
वह शर्मा जी को पिछले 40 साल से देखता था।
उसके मन में एक भ्रांति थी कि यह आदमी थोड़ा उदासीन है और दुनियावी रूप से इसकी कोई तरक्की भी नहीं है। इसलिए वह शर्मा जी को ज्यादा भाव भी नहीं देता था।
मगर उस दिन आनंद के मन में एक बार को तो यही ख्याल आया कि यह तो खुद ही बहुत दुखी दिखाई देता है। पहले इसको जाना चाहिए।
लेकिन फिर उसे लगा कि 40 साल से तो इस आदमी ने कभी कहा नहीं , आज अचानक….
और आनंद उस आश्रम की तरफ चल दिया। मन में तो यही विचार है कि कुछ होना तो है नहीं ! चलो देख लेते हैं ! “भगवान होता ही, तो क्या मुझे ही इतना दुख देना था”।
वहां प्रवेश करते ही आनंद का मन बदल गया। वह वहीं आगे पीछे घूमने लगा। एक अजीब किस्म की सुनसानी उसके मन में प्रवेश करने लगी और वह सोचने लगा कि मैं घर में भी अकेले था। वहां भी सुनसान था । मगर वह सुनसानी काट रही थी। और यहां भी सुनसानी है मगर यह शांति दे रही है।
आनंद वापस घर नहीं आया। उसने आश्रम में ही, कभी इधर, कभी उधर बैठ कर अपना पूरा दिन बिता दिया।
तभी शाम को आश्रम में ही रहने वाले एक साधु ने आनंद से कहा कि आप अंदर आ जाइए अब रात होने वाली है। हमारे सब आश्रम वालों के मिलने का और पूजा का समय है। वह उनके साथ चला गया और पूजा में शिरकत की, फिर भोजन किया और विश्राम भी वहीं किया। उस रात वह सो न सका। पहली बार उसने वहां के लोगों का प्रेम और आनंद देखा था जिसकी अनुभूति उसे कभी इससे पहले, अपने भरे पूरे घर में भी नहीं हुई थी। वह सुबह उठा और आश्रम की दिनचर्या का हिस्सा बन गया।अब उसको अपने घर वापस जाने का खयाल भी नहीं था। वह वहीं सेवा करने लगा। धीरे धीरे वह आश्रम के सभी सेवकों से घुल मिल गया लेकिन शर्मा जी को याद करने लगा। आश्रम में भी शर्मा जी के बारे में पूछताछ की मगर कहीं कुछ भी पता न चला। “उसको लगता था कि यह आदमी 40 साल मेरा पड़ोसी रहा। मैं उसको निराशा से भरा व्यक्ति समझता रहा और उसने मुझे यहां पहुंचा दिया”। वास्तव में वह शर्मा जी को धन्यवाद देना चाहता था।
तभी कुछ महीनों के पश्चात गुरु जी का आना तय हुआ। सारी तैयारियां पूरी कर ली गई ।
गुरु जी ने जैसे ही आश्रम में कदम रखा तो सबसे पहले यही पूछा कि मैंने एक व्यक्ति को बुलाया था उसको बुलाओ। पहले तो कोई समझा नहीं! फिर गुरुजी ने कहा कि “आनंद” नाम का एक आदमी कुछ महीने पहले आया है उसे बुलाओ।
गुरु जी ने उससे मिलते ही कहा “बेटा कभी कभी
जीव को नरक में ही इतना आनंद आने लगता है कि वह असली आनंद को ही भूल जाता है। तब उसकी बेहोशी तोड़ने के लिए इस तरह के झटके दिए जाते हैं जो तुमने सहे हैं और जिनकी वजह से तुम इस आश्रम तक पहुंच पाए। नहीं तो क्या आप सोचते हो कि कभी आप यहां आते ?
“अब खुशियां मनाओ ! तुम उस संसार से मुक्त हुए हो जिसमें से निकलना बेहद मुश्किल है इसलिए तुम बहुत भाग्यशाली हो कि तुम्हें परमात्मा ने इस लायक समझा कि तुम यह सब कुछ सह सके, जो कि एक साधारण दुनियावी व्यक्ति के लिए मुश्किल भी है”।
हालांकि तुम्हारे पास आज भी यह अवसर है कि तुम फिर से नए सिरे से अपने संसार का निर्माण कर सकते हो, अगर आपको यह लगता है कि मुझे सुख अभी भी इस नश्वर संसार में मिल सकता है तो आप खुशी से इस आश्रम से जा सकते हो। आनंद ने एक पल को सोचा ! और तुरंत ही गुरु के चरण में गिर गया, कि मैं अब कहीं नहीं जाना चाहता।
तभी गुरु जी ने आदेश दिया कि इनका जो भी बैंक का बकाया ऋण है, उसको श्रद्धालुओं के गुप्त दान में से चुका दिया जाय।
आनंद ने गुरु जी से विनती की, कि वह शर्मा जी से मिलकर उनको धन्यवाद देना चाहता है। गुरु जी ने आनंद से कहा – “बेटा वह मालिक हमारे अंग संग हमेशा ही रहता है मगर हम अपने अहंकार में उसको नहीं देख पाते हैं और जो भी व्यक्ति अपने कृत्य या वाणी से तुम्हारे विवेक को जगा दे, वह परमात्मा का ही रूप है”। अब तुम्हे शर्मा जी नहीं मिलेंगे मगर तुम्हारी दिल से निकली हुई इच्छा उन तक पहुंच गई है । चिंता मत करो, आप उनके ऋण से भी मुक्त हुए।
गुरु जी ने आनंद को भक्ति की युक्ति दी, और साथ में कुछ सुझाव भी दिए –
1) यह पूरा संसार परमात्मा ने ही बनाया है और वह खुद ही हर चीज में एक खेल, खेल रहा है। मन के कारण हमें दिखाई नहीं देता।
2) जब भी इस संसार को देखो, मन को हटाकर देखना। तुम्हें परमात्मा के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं दिखाई देगा।
3) आज से जो भी काम करो, उसे परमात्मा की सेवा समझना। क्योंकि सब में वही खेल रहा है।
4) कोई भी सेवा छोटी बड़ी नहीं है। क्योंकि सब जगह उसी की सेवा हो रही है । और सेवा भी वही कर रहा है। एक वक्त ऐसा आएगा जब यह शरीर गिर जाएगा, तब तुम चाह कर भी सेवा नहीं कर पाओगे।
5) सेवा ऐसे करो कि उसमें तुम्हारे हस्ताक्षर हों । सिर्फ सेवा ही रह जाय। सेवा करने वाला भी न हो। तब यह समझना कि सेवा मन नहीं बल्कि परमात्मा ही कर रहा है।
6) आज के बाद तुम नहीं हो । परमात्मा तुम्हारे शरीर में बैठकर, मन से काम ले रहा है।
7) तुम न तो शरीर हो, न मन और न ही तुम्हारा कोई गुरु है। और न ही तुम्हारा कोई सगा, संबंधी, सखा।
8) तुम सब में हो और सब तुम में हैं। क्योंकि तुम भी परमात्मा हो और सब भी परमात्मा हैं।
9) तुम मुक्त ही थे। फिर मन के जाल में फंसे। और अब फिर मुक्त हो।
10) ध्यान रखना! जिस दिन भी तुम्हारे अंदर (“मैं कर रहा हूं,! मैं बड़ा हूं या छोटा हूं। मेरी इज्जत या बेइज्जत, ये मेरा है, वह दूसरे का है”।) ये भाव आने लगे, समझ लेना कि तुम यहां अपना एक नया संसार बनाने लगे हो। फिर तुम्हारे में और एक संसार में भटक रहे व्यक्ति में, कोई अंतर नहीं है। तुम आश्रम में रहकर भी कभी मुक्त नहीं हो पाओगे।
आनंद अब आश्रम में ही रहकर हर प्रकार की सेवा करने लगा और वह सेवा में इस तरह खो जाता कि उसको खाने पीने का भी ध्यान नहीं रहता।धीरे धीरे उसका बोलना भी बहुत कम हो गया और ज्यादातर वह अपने एकांत में रहने लगा।
कुछ वर्षों के बाद फिर गुरु जी ने आश्रम आने का निर्णय लिया। जब गुरु जी आए, तो उन्होंने आनंद से कहा कि अब वह अपने आनंद को बांटे। रोज सुबह आश्रम में सत्संग की व्यवस्था की जाय। आनंद ने सत्संग प्रारंभ कर दिया। आनंद की वाणी की कशिश आस पास में ही नहीं बल्कि देश विदेश में तक गूंजने लगी और करोड़ों लोगों का जीवन बदलने लगा। उनके सत्संग की कई किताबों का प्रकाशन भी हुआ और जन जन तक पहुंच गई । एक रोज गुरु पूर्णिमा के दिन सत्संग करते हुए ही आनंद ने शरीर त्याग दिया।
कहते हैं कि आनंद को मोक्ष्य की प्राप्ति हुई।
तुराज़…..✍️
Really agreat story 💯💯
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Warm regards 🙏❤️
Good story…!!
Thanks, again for your valuable feedback.
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