कैंसर से निर्वाण तक
“Cancer to Nirvana”
(Spiritual Story)
एक बार एक व्यक्ति को कैंसर हो गया। डॉक्टर ने उसके टेस्ट देखे और उसको कहा कि तुम्हारी जिंदगी अब लगभग एक महीने की ही बची है। इस बात से उसके दिल पर जोर का धक्का लगा, क्योंकि वह एक बहुत बड़ा बिजनेसमैन था। उसने खूब धन कमाया था और देश विदेशों में अपना कारोबार फैलाया था।
वह घर गया और चुपचाप अपना कमरा बंद करके एकांत में चला गया। उसने विचार किया कि मैंने अब तक जो भी कमाया है, वह धन कितना है! उसने अपनी खाता बही निकाली और देखा कि उसने लगभग ₹10 करोड़ की टैक्स की चोरी की थी। वह अगले ही दिन इनकम टैक्स डिपार्टमेंट गया और उसने खुद ही अपनी सारी इनकम घोषित कर दी और उस पर दस करोड़ रूपये का सारा टैक्स चुका दिया।
दूसरे दिन वह अपने एक दुश्मन के वहां चला गया। बिना किसी सुरक्षा दल साथ लिए, जिससे उसकी जान को हमेशा ही खतरा बना रहता था। उसने दरवाजा खटखटाया और कहा कि वह माफी मांगने आया है। ( उसका दुश्मन तो हैरान हो गया कि यह बिना सुरक्षा दल के, अकेले मेरे घर में !) अब उसकी जिंदगी महज एक महीने की बची है। उसको केंसर हो गया है और देश के सबसे बड़े डाक्टर ने कहा है कि एक महीने के अंदर उसकी मृत्यु हो जाएगी। अतः उसकी यही इच्छा है कि उसे माफ कर दिया जाए । अगर कोई कीमत उसने देनी है तो भी वह देने को तैयार है। लेकिन वह अब चैन से मरना चाहता है। यह बात सुनकर दुश्मन की आंखों में भी आंसू थे। उसने दुश्मन का दिल जीत लिया था। दुश्मन भावुक हो गया और उसने उसे गले लगा लिया और दोनों ने ही एक दूसरे से माफी मांगी और चाय पीकर वह दुश्मन के घर से विदा हुआ था।
वहां से वह अपने बैंक गया और जो भी ओवरड्राफ्ट था वह उसने भुगतान कर दिया। उसके अलावा जिसके भी पैसे उसने लिए थे वह सब भुगतान कर दिए । उसके बाद से वह पूरे महीने तक खूब नाचता, गाता, हंसता। लोगों को खाने पर बुलाता, खाता, पीता, घूमता और मस्त रहता। दान, पुण्य मदद, सेवा, जो भी उसकी सामर्थ्य थी, उसने मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, बस्ती मैं जाकर की। उसने एक महीना इतने आनंद में बिताया जैसे एक छोटा सा बच्चा बिना किसी भूत और भविष्य की चिंता के जीता है।
वह एक बच्चे की तरह ही हो गया था। किसी से कोई गुस्सा नहीं, दुख नहीं, परेशानी नहीं, क्योंकि उसने मन में फैसला ही कर लिया था कि अब तो मुझे मरना ही है तो किसी को भी मेरी वजह से दुख नहीं होना चाहिए तो फिर दूसरे से दुखी होने का, दूसरे को गुस्सा करने का, अपेक्षा रखने का कोई मतलब ही नहीं था। झूठ बोलना, मिथ्याचरण, दिखावा करना, लोकाचार वश व्यवहार करना, आचरण करना। उसने यह सब छोड़ दिया।
वह एक सादे कागज की तरह साफ हो गया। कहते हैं कि जब कैंसर उसके पूरे शरीर में फैल गया और उसकी मृत्यु हो रही थी, तब वह निर्भार था। खुश था। और उसका चेहरा दमक रहा था। और उसके चेहरे में इतनी प्रसन्नता और खुशी थी क्योंकि उसके दिल में कोई बोझ नहीं था। उसका जीवन धन्यता का अनुभव कर रहा था कि उसको मृत्यु का पहले ही पता चल गया। जिसकी वजह से उसने अपना जीवन इतना सुखी कर लिया था। साफ कर लिया था। हल्का कर लिया था। अपने को सभी वासनाओं, इच्छाओं और तृष्णा से भी मुक्त कर लिया था।
कहते हैं कि वह व्यक्ति इस भवसागर से मुक्त हो गया। जिस व्यक्ति को मृत्यु का बोध आ गया जिसने अपनी मृत्यु को अपने सामने ही देख लिया उसका जीवन धन्य हो जाता है। अमर हो जाता है। वह मुक्त हो जाता है। फिर वह इस संसार में दोबारा वापस नहीं आता और उसकी कोई मृत्यु नहीं होती। वह शरीर छोड़ता है तो पूरी धन्यता से। आनंद से। खुशी से। उसको इस जीवन के चले जाने का कोई दुख नहीं था। उसने प्रसन्न होकर इस जीवन को छोड़ दिया और वह मुक्त हो गया।
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