संवेदनशील ह्रदय चाहिए
“Sensitive Heart”
(Motivational Thoughts)
बुद्ध कहते हैं, दया भाव तुम्हें अपनी ओर ले जाएगा तुम्हें आभास होगा दूसरे की पीड़ा और दुख का। जब तक हमें दूसरे की पीड़ा और दुख का आभास नहीं होगा तब तक न तो हम उन की स्वतह सहायता कर पाएंगे और नहीं जीवन मात्र के लिए हमारे अंदर करुणा का जन्म होगा। अभी हमारा मन कठोर है।
हालांकि हम यह मानने को तैयार नहीं है क्योंकि हम दान पुण्य भी करते हैं, पूजा पाठ भी करते हैं। किसी को सताते भी नहीं हैं। मगर बुद्ध कहते हैं मनुष्य जो कुछ भी करे, अगर, अभी उसे अपने होने का ही आभास ना हो, उसने अपने को शरीर और मन ही मन रखा हो, तो वह अपने धर्म से दूर है। अपने स्वभाव से दूर है। जो शाश्वत है। और जब तक हम अपने स्वभाव से अनभिज्ञ हैं तब तक हम दूसरे जीवों के दुख को नहीं देख पाएंगे। हम में दया और करुणा ऊपर ही ऊपर होगी।
नम्रता को इसीलिए बुद्ध ने बहुत जोर दिया। उनका कहना है कि नम्रता यह बताती है कि आपका मन कठोर नहीं है। और जिसका मन कठोर है उसको अपने मूल स्वभाव की पहचान नहीं हो पाएगी। क्योंकि अपने धर्म तक पहुंचने के लिए बहुत ही दयावान और नम्र ह्रदय चाहिए। इसीलिए बुद्ध ने अहिंसा की बात की।
कठोर हृदय दूसरे के दुख को नहीं देख पाता और हिंसा कर बैठता है। उसको दूसरे की भावनाएं, जज्बात, पीड़ा और दुख दिखाई ही नहीं देते। वह संवेदनशील नहीं होता। और जब तक वह हिंसा का रास्ता नहीं छोड़ता तब तक वह संवेदनशील नहीं हो पाएगा। और अपने धर्म तक, अपने मूल स्वभाव तक पहुंचने के लिए बहुत ही संवेदनशील हृदय चाहिए।