तृष्णा दौड़ाती है
“Craving Drives”
(Motivational Thoughts)
जिस व्यक्ति के अंदर जितनी तृष्णा है, वासना है, संसार को भोग लेने की। उसका मन एक जगह नहीं ठहरता। उसके विचार दौड़ते ही रहते हैं। एक फूल से दूसरे फूल पर भौंरे की तरह वह अपनी एक वासना से दूसरी वासना में अपने मन को दौड़ाता ही रहता है। और जब तक नींद से वह गिर ही नहीं जाता तब तक उसके विचार चलते ही रहते हैं।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वह नींद में चैन से सोता होगा। वहां फिर उन्हीं वासनाओं, तृष्णाओं के सपने देख रहा होता है। यानी 24 घंटे उसके अंदर विचारों की दौड़ चल रही होती है जो उसके मन को उलझा के ही रखती है। उसके अंदर कोई रचनात्मक विचार पैदा नहीं होने देती।
ऐसे व्यक्ति का मानसिक विकास नहीं होता चाहे वह किसी भी कारण से भिक्षु ही क्यों न बन गया हो। उसकी तृष्णाऐं उसका पीछा करती रहती हैं। और उसको उसके मार्ग से बार-बार भटका देती हैं। गिरा देती हैं।