बुद्ध के 7 विकार मुक्ति के तरीके
7 Steps of Buddha
(Motivational Thoughts)
बुद्ध ने मनुष्य के मन की स्थिति को समझकर जो कि हमेशा ही विषय विकारों की तरफ दौड़ता रहता है, सात तरीके बताए जिनके द्वारा मनुष्य के मन को विकारों, आश्रवों और भय से बचाया जा सकता है।
बुद्ध कहते हैं कि विचार से यानि दर्शन से आश्रव को देखा जा सकता है और अयोनिसो मनसिकार से बचा जा सकता है। मन में विकार उत्पन्न ही न हों और अगर उत्पन्न हो गए हैं तो उनका अंत हो जाए और भविष्य में उत्पन्न ही न हों ऐसा ठीक ठीक मन में विचार बैठा लेने से ही होता है। सत्पुरुष की संगति, बुद्ध के उपदेश, धम्म श्रवण से विचार दृष्टि खुलती है दर्शन जागता है।
मान्यता, आडंबर, रीति रिवाज, रूढ़िवादिता, पाखंड आदि को विचार दर्शन से ही दूर किया जा सकता है।
दूसरा – संयम से हम विकारों की मैल नहीं चढ़ने देते इसलिए संयम जीवन में जरूरी है।
तीसरा – स्वीकार और ग्रहण कर लेने से भी विकारों, आश्र्वों से मुक्ति मिलती है। जैसे भूख लगने पर भोजन करना मगर मात्रा जानना, जरूरत होने पर चीवर ओढ़ना, सर्दी गर्मी से बचना आदि ।
चौथा – त्याग मात्र से भी हम विकारों आश्र्वों से मुक्त हो सकते हैं । जैसे बुरी संगति से बचना, मूर्खों की दोस्ती त्यागना, हिंसक जानवर रास्ते में हो तो रास्ते को त्यागना आदि।
पांचवा – भावना ध्यान से हम आश्र्वों विकारों से मुक्त हो सकते हैं जैसे काम विमुक्ति भावना से काम वासना से बचा जा सकता है।
छटा – सहन करने से भी हम आश्र्वों से विकारों से मुक्त हो जाते हैं। जैसे सर्दी गर्मी आदि को सहन करना, भूख को सहन करना, बुरे वचन को सहन करना, आदि
सातवां – हटाने से, अलग करने से भी विकारों से बचा जा सकता है जैसे काम वासना के संकल्प, विकल्प तर्क कुतर्क को छोड़ता है, अलग करता है, ध्यान नहीं देता।
इस तरह से एक साधक जूझता रहता है और एक दिन अपने सभी आश्र्वों से, विकारों से मुक्ति पा लेता है।