कौन हूँ मैं ?
(Hindi Poetry)
क्या कभी पूछा है
अपने से –
कि मैं कौन हूँ ?
क्या तुम दुनिया में
अपनी मर्जी से आये ?
ये माँ-बाप चुने थे
तुमने खुद से ?
ना तो अपना नाम पता था
ना गोत्र, जाति, धर्म
और देश पता था ?
अब देखो,
कैसे लड़ते हो
तुम इन पर ?
कितना अचरज सा
है ये जीवन !
नंगा ही हर कोई
आता-जाता है
फिर भी क्यों !
इतना अकड़ा-अकड़ा सा ,
इतराता सा रहता है
हमने तो बचपन से ही
सब कुछ कहा हुआ
मान लिया ,
बिना अनुभव के ही
जैसे सब कुछ जान लिया
तुम सोचो !
अपने, अब तक के जीवन से
क्या ऐसा कुछ हुआ है –
जैसा तुमने चाहा था ?
ना जीवन हमने चाहा था
फिर भी मिल गया
ना मौत हम चाहेंगे
फिर भी क्या पता
कब आ जायेगी !
फिर जीवन – मृत्यु के
बीच की गाथा
मेरे मन की सी
कैसे लिक्खी जाएगी !
जब सब नियति,
लिख ही चुकी है तब,
अपनी गाथा लिखने को
अब क्या बची है ?
अब इच्छा, आशा से
ऊपर उठ, “तुराज़”,
अपने को बस
द्रष्टा से देखो
न कर्म से जुड़ो
न करनी से
बस सब कुछ होता देखो
तुम मुक्त हो, मुक्त हो
बस मुक्ता को ही
करते देखो।
तुराज़….. ✍❤
Deep thought..!