गर्भ कहां है जीवन का
“Where is the Womb of Being”
(Hindi Poetry)
चूहेदानी चूहे के पीछे
कब भागी है
चूहा ही आता है,
बेचारा फंस जाता है
दुख के लिए सब दरवाजे
बंद होते हैं घरों में
फिर भी किस कौने से
दुख आ जाता है?
चूहे दानी चूहे के पीछे……
जीवन की व्यथा ही कुछ ऐसी है
जो भी मांगो
आज नहीं तो कल
मिल ही जाता है
कोई सपना सच हो भी जाए तो क्या?
तब भी जीवन
कहां बच पाता है?
चूहे दानी चूहे के पीछे कब भागी है….
कौन देख पाता है
अपने को अंतरतम में
आँखें तो बाहर ही को खुलती हैं
सारी दुनियां में
जगमग जगमग दिखती है
इस चकाचौंध में
अपनी ही मौत भूल जाती है
चूहेदानी चूहे के पीछे कब भागी है….
चाहत है दुनियां में
सबकुछ पा लेने की
पल पल को
निचोड़ कर पी लेने की
कहां से आता है
कौन कहां चला जाता है
इस गर्भ की हमें
कोई खबर नहीं
यूं ही अपनी अपनी
तृष्णा को लिए
बिना तृप्त हुए सब छोड़ जाता है
चूहेदानी चूहे के
पीछे कब भागी है…..
(तुराज)