तुराज़ की शायरी -12 “Turaaz ki Shayari” (Hindi Poetry)

तुराज़ की शायरी -12 “Turaaz ki Shayari” (Hindi Poetry)

तुराज़ की शायरी

“Turaaz ki Shayari”

(Hindi Poetry)

 

उन ख्वाबों की
“हसरतें”
अब बड़ने ही लगी हैं
जो ज़ख्म जिगर पर
“चुभन”,
मीठी सी बनकर

लोरी सी गाते हैं,
” सुलाते”
भी हैं रातों में,
“जगाते ”
भी हैं मुझको

“शिकायत”
नहीं, मेरी अब
कोई तेरे से “तुराज़”
“जीने”
की दवा मुझे अब
मिल ही गई है।

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"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़

2 comments

  1. Turaaz says:

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    Thankyou 🙏🙏