तुराज़ की शायरी
“Turaaz ki Shayari”
(Hindi Poetry)
उन ख्वाबों की
“हसरतें”
अब बड़ने ही लगी हैं
जो ज़ख्म जिगर पर
“चुभन”,
मीठी सी बनकर
लोरी सी गाते हैं,
” सुलाते”
भी हैं रातों में,
“जगाते ”
भी हैं मुझको
“शिकायत”
नहीं, मेरी अब
कोई तेरे से “तुराज़”
“जीने”
की दवा मुझे अब
मिल ही गई है।
वाह वाह क्या बात है 👌
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