तुराज़ की शायरी -3 “Turaaz ki Shayari” (Hindi Poetry)

तुराज़ की शायरी -3 “Turaaz ki Shayari” (Hindi Poetry)

तुराज़ की शायरी -3

“Turaaz ki Shayari” -3

(Hindi Poetry)

जिंदगी भर दूसरे को
हराता रहा “आदमी”
पर मैंने तो हर आदमी को
“खुद” से हारते देखा है।

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मैंने अपने बनाए थे…
उम्मीद थी
कि अब मैं अकेला नहीं,
वह बन भी गए पर
मैं अकेला ही रह गया…
फिर घूमता हूं बाहर “अकेला”
एक उम्मीद लिए
शायद, फिर कोई अपना
बन जाए
मेरे अकेलेपन का सहारा

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वह भी बात ही थी,
कुछ लफ्ज़ रहे होंगे!
जिन्होंने झकझोर दिया था मुझको
ये भी कुछ लफ्ज़ ही हैं
मैं लुटा देना चाहता हूं अपने को
गर मैं लफ्ज़ की वजह हूं
तो हकीकत में
“मैं” कौन हूं?

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मैं न दर्द में हूं
न गम में किसी के,
मेरी हस्ती ही है
चंद घंटे की,
मैं नाजुक बहुत
चांदनी भी
झुलसाती है मुझको,
लूट लो सब, मेरा भला
पर मसल कर क्या मिलेगा किसको
सुबह के किरण से
खिली थी मैं
शाम तलक है मुझे
मुरझा जाना।
मैं न दर्द में हूं (तुराज़)
न गम में किसी के…..

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"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़