तुराज़ की शायरी -2 “Turaaz ki Shayari” (Hindi Poetry)

तुराज़ की शायरी -2 “Turaaz ki Shayari” (Hindi Poetry)

तुराज़ की शायरी -2

“Turaaz ki Shayari”

(Hindi Poetry)

हसरतें कम हों गर,
“मायूस”
समझ लेते हैं लोग
हसरतें बड़ गई हैं अब
बेचैन दिल कहते हैं लोग

         ….…

सूख गया हो भला
पर आज भी थक – हार कर
पंछी आराम भी करता है
और अपनों से बात भी,
अपनी परवाह उसे कहां
जो जिया ही दूसरों
के लिए हो

        ……….

वह भी बात ही थी,
कुछ लफ्ज़ रहे होंगे!
जिन्होंने झकझोर दिया था मुझको
ये भी कुछ लफ्ज़ ही हैं
मैं लुटा देना चाहता हूं अपने को
गर मैं लफ्ज़ की वजह हूं
तो हकीकत में
“मैं” कौन हूं?

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"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़