तुराज़ की शायरी -1
“Turaaz ki Shayari”
(Hindi Poetry)
कहां रह पाता हूं मैं
बिन तेरे दीदार के
मेरे जिगर में धड़कन
तुझ ही से है।
हर रात का हश्र भी
रोज यही होना है
रोज आफताब ने उसे
सुबह ही निगल जाना है
………..
आग लगे कहीं
तो कौन छुपा पाया है
धुंआ उठ उठकर बताता है
कि कहीं कोई जल रहा है
………..
वस्ल-ए-रात भी
न भरा दिल यार से
दर्द-ए-दिल भी वही
और हसरतें भी वही
–
तमाम उलझनें भड़कती रहीं ,
डराती रहीं हमें रात दिन
हमने कहा –
अभी तमन्नाएं तरन्नुम में हैं
दिल में हमारे
उलझनों, अभी तुम से उलझने की
हमें फुरसत कहां
–
कितने हसीन ख्वाब, दिखाती है “जिंदगी”
नींद गई, फिर बैठकर पछताती है “जिंदगी”
हर उम्र के अपने सपने हैं महल बना लेने के
हर उम्र की अपनी खामोशी भी है
जो बताती है स्वाद-ए -जिंदगी…
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