तुराज़ की शायरी -6 “Turaaz ki Shayari”-6 (Hindi Poetry)

तुराज़ की शायरी -6 “Turaaz ki Shayari”-6 (Hindi Poetry)

तुराज़ की शायरी -6

“Turaaz ki Shayari”

(Hindi Poetry)

दूसरों को बदलने की
कोशिश में वक़्त बर्बाद न कर
यह ख़्वाहिश ख्वाबों में दबी
रह जाती है,
तू ठहर कर बैठ,
ख़ुद को देख ज़रा
तो तू निखर जायेगा
”””””””””””””””””
कौन रोक पाया है
कशिश प्यार की
जैसे दरिया बहे चला जाता है
समन्दर की तरफ,
परवाह भी किसे है
रास्ता ढूँढने की “तुराज़”
चलता है तो खुद-बखुद
बनता चला जाता है…
””””””””””””””””””
ना चाहते हुए भी
ना न कह सके
और आज हम
अपने से ही
बहुत दूर
चले
गए
”””””””””””””””””””
भगवान की बातें बहुत हैं
पर हम सहारा तलाशते हैं संसार में,
कभी-कभी मंदिर, मस्जिद, चर्च
और गुरुद्वारे चले जाते हैं
पर मयखाने में आते-जाते रोज़ हैं,

कुछ भी किसी के बारे में कहने से
बहुत मज़ा मिलता है “तुराज़”
ख़ामोशी में उसकी याद को
लोग बोरियत कहते हैं।
“””””””””””””””””””””

(तुराज़)

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"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़