कुंभ स्नान ही मेरा जीवन “Spiritual Poem” (Hindi Poetry)

कुंभ स्नान ही मेरा जीवन “Spiritual Poem” (Hindi Poetry)

कुंभ स्नान ही मेरा जीवन

“Spiritual Poetry”

(Hindi Poetry)

 

संयम हो, अनुशासन हो

तब बातें आध्यात्म की हों

कुछ नियम कर्म हों

भ्रमण हो, तीर्थ हो

प्रयाग, काशी मथुरा

हरिद्वार और कुंभ में स्नान हो

संयम हो, अनुशासन हो

तब मुक्ति की, मोक्ष की बात हो

चुप्पी हो मन में

तन में थोड़ी थिरता हो

जब भी हों असमंजस में

न करे अफरा तफरी

सबको ले साथ, बड़े विश्वास

संयम हो अनुशासन हो 

तब जीवन में सुख शांति हो

सहारा बन सकें किसी का

सेवा ही सबसे बड़ा कर्म हो

पर पीड़ा को समझ सके जो

सबसे बड़ा पुण्य कमाए वो

संयम हो अनुशासन हो 

तब जीवन सार्थक हो

बुद्धों के पग चिन्हों पर चल

ज्ञान का साक्षी हो

स्मृति जगे जगाए किसी को

जीवन में कल्याण करे वो

संयम हो अनुशासन हो 

धीरज धर सेवा कर ले जो

मनचाहा फल पा लेता है वो

परे स्वार्थ से सब जीवों के

भले की बात करता है वो

संयम हो, अनुशासन हो 

कुंभ हो या महाकुम्भ

वो आनंदित हो

सर्व भले की सोचता है वो

पर उपकार, सबका मंगल

यही कामना करता है वो

संयम हो अनुशासन हो 

पाप मुक्त हो इसी जीवन में

सबकुछ पा लेता है वो….

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"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़