नव वर्ष की पूर्व संध्या
“On the Eve of New year”
(Hindi Poetry)
कुछ सुख के, कुछ अपनेपन के
कुछ इच्छाओं और आशाओं के
सपने बुनकर सुंदर महल
खड़ा कर जाती हो
तुम नई, नूतन, नन्ही सी
रश्मिका का पल बनकर
फस्ट जनवरी कहलाती हो
और तुम्ही थटी-फस्ट बन कर
वापस भी चली जाती हो
मैं भी हर एक जनवरी को
सपने बुनता हूं
कुछ वादे और
कुछ कसमें भी लेता हूं
कुछ पा लेना चाहता हूं
कुछ छोड़ देना चाहता हूं
पर जैसे-जैसे दिन चढ़ता है
रश्मि तपिश ले उठती है
मैं भी मदमस्त
अपनी आदत में
भूल-भूल जाता हूं
शायद ही कुछ निभा पाता हूं
फिर आत्म-ग्लानि में घुट-घुट कर
सब भूल जाता हूं।
कुछ खट्टे कुछ मीठे
स्वाद दिए तुमने
कुछ नए बने रिश्ते
कुछ छीन लिए तुमने
कभी बहुत हंसा था में
कभी बेहद रुलाया तुमने
कुछ पाया था
मैंने वर्षों की मेहनत से
कुछ लूट लिया था
तुमने छिन भर में
तुमको कुछ फर्क नहीं
तुम तो नई नूतन, नन्हीं सी
रश्मिका का पल बनकर आती हो
जैसी आती हो
वैसी ही नूतन
चली भी जाती हो
मेरा हृदय खंडित है
आशाओं और तृष्णाओँ से
पल भर में खुशी
पल भर में द्रवित है
अपनी ही व्यथाओं से
कुछ ताकत दो
साहस दो, सन्मति दो
सुख-शांति और खुशी दे दो
तो मैं भी तुम सा बन पाऊं
सब कुछ देखूं, सहूं
और महसूस करूं
पर निश्चल, निष्कपट, निर्लिप्त
तुम सा हो जाऊं
शुरूआत करूं या अंत करूं
तब भी नाचूं और गांऊं
मंदिर में जाकर घंटे-शंख बजाऊं
या फिर बधाईयां बांटूं
सबको खुशियां फैलाऊं
इतना साहस और शक्ति दो
कृपा-दान बरसाओ मुझ पर
कि मैं भी अडिग रहूं
सत्य पथिक बन, तुम सा
समय में भी रहूं
और समय के पार भी हो जाऊं
तुम तो नई नूतन, नन्हीं सी
रश्मिका का पल बनकर
फस्ट जनवरी को आती हो
जैसी आती हो
वैसी ही नूतन
थटी फस्ट को
चली भी जाती हो
तुराज़……✍️