“निभते हुए रिश्ते” (Relationship)“
(Hindi Poetry)
देखा तो है हमने
अंधड़ में लचीले पेड़ों को
लचक रिश्तों में हो इतनी
गर, उम्र सहज ही कट जाती है
अंधड़ में लचीले पेड़ों को
लचक रिश्तों में हो इतनी
गर, उम्र सहज ही कट जाती है
झुलसे हुए पेड़ों की तरह
जिंदा तो हैं मग़र
उस शहर में रोज़ ही
आंधी आती है।
कुछ ही समय
तो बिताना है
इस मुसाफिर खाने में
ए-खानाबदोश!
फिर बर्तन बजने का
शोर इतना भी क्या
कि शहर के चौराहों पर
चर्चाएं हुई जाती हैं।
शोर इतना भी क्या
कि शहर के चौराहों पर
चर्चाएं हुई जाती हैं।
~ तूराज़