पहाड़ की मौत “Death of a Mountain” (Hindi Poetry)

पहाड़ की मौत “Death of a Mountain” (Hindi Poetry)

पहाड़ की मौत

“Death of a Mountain”

(Hindi Poetry)

आज फिर भयावह चीख से टूटा है कोई पहाड़
मैं गवाह हूं उसके व्यक्त दुख का जो असहनीय है-
सूख चुकी हैं जड़ें गर्मी से, नीचे सब खोखला है,
ट्रेनें दौड़ती हैं लंदन में या दिल्ली में
मैं थर थर कांपता हूं,
जब बम गिरते हैं अफगान में, या इजराइल में
मेरी रूह निकलती है हिमालय में, और
कोई देश खुश होता है कि वह जंग जीत गया
इंसान के जल्लादपन ने
मुझे मजबूर कर दिया है अब मरने को
पर वह नहीं समझेगा, वह भी मर जायेगा,
पर विकास, साइंस, टेकनॉल्जी के नाम पर
कालिदास की तरह उसी
टहनी को काटेगा जिस पर
बैठा होगा।
अब का मानव भस्मासुर बन चुका है।
उसके हाथ में बटन हैं, और बारूद भी
“मैं मजबूर हूं, मुझे गिरना ही होगा
मुझे मरना ही होगा पर
अफसोस!
, कि मेरे पीछे
सब मानव जाति भी मर
जायेगी”!
“तुराज़”…..✍️

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"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़

2 comments

  1. Turaaz says:

    Thankyou sir,
    You are as valuable as diamond 💎 for me. Your appreciation always give me a booster for my upcoming work.
    Thanks again🙏🙏❤️🌻