अद्भुत: “Amazing” ( Hindi Poetry)

अद्भुत: “Amazing” ( Hindi Poetry)

अद्भुत

“Amazing”

(Hindi Poetry)

इस नीले आसमान के नीचे
इस धरती का एक कण हूं मैं
पर कितना अद्भुत हूं मैं

चारों तरफ फैली हुई इस
बहुरंगी दुनियां का एक अंग हूं मैं
मानों इंद्रधनुष के रंगों का
एक रंग हूं मैं
पर कितना अद्भुत हूं मैं

बहती हुई नदियों की
कल-कल की आवाजें
गिरते हुए झरने की कर्कश,
इन सबका दौड़ दौड़कर
समंदर में मिल जाना और
फिर डरावनी लहरें और आवाजें
उनको आभास करने वाला
रेत का सा एक कण हूं मैं
पर कितना अद्भुत हूं मैं

हवा की सनसनाहट का
पेड़ से टकराना
डालों का हवा के साथ-साथ जाना
फिर लौट कर वापस आ जाना
उन ठंडी हवाओं का मेरे
नाक और गाल को ठंडा कर
मेरे बालों का मेरे आंखों में
घुंघटा सा कर देना
उस हवा के बीच सांस ले रहा हूं मैं
कितना अद्भुत हूं मैं

हरे घास के मैदान में
चारों ओर खिले बहुरंगी फूल
उनके ऊपर मंडराती तितली और भौंरे
कौन चित्रकार है
जो भरता है इतने प्यारे रंग
इन रंगों के बीच
कितना अद्भुत रंग हूं मैं

दूर सूरज का छिप जाना
इस धरती के क्षितिज में
अंधेरे का घिर जाना संध्या में
चिड़ियों की उड़ान व
चहक का थम जाना और
दूर गगन में
बर्फीला गोला सा चंदा
धरती मंत्रमुग्ध हो
नहा रही हो जैसे
दूधिया रोशनी से और
अनगिनत तारे
ताली बजाते, टिम-टिम करते
क्या धरती पर
मैं भी एक तारा हूं?
कितना अद्भुत हूं मैं
तुराज़……✍️

 

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"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़

4 comments

  1. Turaaz says:

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