समायोजन
“Adjustment”
(Hindi Poetry)
सब संभव हो जाता है
अगर समायोजन(adjustment) हो
जीवन में
फूलों में ही देखो !
कांटे भी संग जुड़े हैं
मधु और गंध की लूट मची है
पराग को ले जाने की होड़ लगी है
देना ही देना है उसको,
सब संभव हो जाता है
अगर समायोजन हो जीवन में
पेड़ों में ही देखो !
सब पंछी आ जाते हैं सांझ को
अपना – अपना राग अलापते
फूल और फल भी देते,
आसरा और छांव भी,
जीने में भी लकड़ी देते मानव को
और मरने में भी लकड़ी,
सब संभव हो जाता है
अगर समायोजन हो जीवन में
पानी में ही देखो !
कमल खिले हैं, मछली भी
बगुले और बतख नृत्य भी करते
सब का अपना-अपना जीवन चलता
रोते भी हैं और हंसते भी,
फिर भी सब मिलकर रहते,
सब संभव हो जाता है
अगर समायोजन हो जीवन में
जंगल में ही देखो !
कितने हिंसक, कितने सीधे
विशाल और नन्हें से भी
सब जीवन-यापन करते हैं अपना
खुद भी, और परिवार परवरिश भी
क्योंकि सब संभव हो जाता है
अगर समायोजन हो जीवन में
अंबर में ही देखो !
भांति – भांति के पंछी उड़ते
कब टकराता है कोई किससे ?
कीट – पतंगे उड़ते ही रहते
बनते हैं फिर मिट जाते हैं,
सब जीवन चलता ही रहता
आंधी,तूफान, बबंडर उठता
सब सह लेते हैं उसको,
सब संभव हो जाता है
अगर समायोजन हो जीवन में
धरती पर ही देखो !
पानी ही पानी है
फिर भी पहाड़ लदे हैं,
पठार , जंगल, रेगिस्तान भरे हैं
पानी में जीवन, धरती और
अंबर में भी जीवन है
अरबों मानव हैं, बेअंत प्राणी हैं
क्या महिमा कर पाएगा “तुराज़”
बस यही कह सकता है
कि सब संभव हो सकता है
अगर समायोज हो जीवन में
“तुराज़”…..✍️
Exactly.
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Nice thought..!👌👌
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