वर्तमान में जीने की कला “Live in the present” (Spiritual Motivation)

वर्तमान में जीने की कला “Live in the present” (Spiritual Motivation)

वर्तमान में जीने की कला

“Live in the present”

(Spiritual Motivation)

 

वर्तमान में जीने का अर्थ है होशपूर्वक पल पल जिंदगी को जीना। वैसे तो हमें हमेशा ही यही लगता है कि हम अगर आंख खुली हुई है, नींद में नहीं हैं या बेहोश नहीं हैं तो फिर हम होश में ही तो हैं लेकिन ज्ञानी, संत, बुद्ध पुरुष, गुरु, सतगुरु इसे होश नहीं कहते।

उनकी होश की परिभाषा यही है कि क्या हम वर्तमान के पल में स्मृति पूर्वक जी रहे हैं या किन्हीं विचारों में, भावों में, उलझन, परेशानी में हैं। क्योंकि जब हम होश में होंगे तब हम सिर्फ वर्तमान में होंगे और स्मृतिवान होंगे। हम न तो भूत में होंगे और न भविष्य में।

एक छोटे से प्रयोग से हम अपनी वर्तमान की स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं। जब किसी का फोन आए तब आप अपनी बात करें यानि अपने बारे में बात करें न कि दूसरे के बारे में। आप हैरान हो जाएंगे कि अगर यह होश बना रहा तो आपके पास बात करने को कुछ भी बहुत ज्यादा नहीं होगा।

साधारणतया हम जब फोन पर बात करते हैं तो मौसम की बात करते हैं अपनी नहीं। हम दूसरे से हमारी क्या बात हुई, उसका फोन आया नहीं आया अगर आया तो उसने क्या बताया यही सब बातें दूसरे को बताते हैं और दूसरा भी यही सब बातें आपको बताता है। कौन बीमार हो गया, कौन ठीक हो गया, कहां शादी होनी है, कहां बच्चा होना है। किस के वहां क्या कलह चल रहा है। कहां प्यार चल रहा है यही सब बातें फोन पर करते हैं उसमें कहीं भी न तो अपनी बात होती और न दूसरा अपनी बात करता।

हम घंटों इसी तरह फोन पर अपने वक्त बर्बाद करते हैं। जिनकी बातें हम फोन पर कर रहे होते हैं उनसे हम सीधे भी बात कर सकते थे लेकिन जब करते भी हैं तो फिर किसी तीसरे की ही बात करते हैं। इस तरह हम अपना समय और पैसा दोनों बर्बाद करते हैं।

वर्तमान में जीने की कला का अभ्यास हमें अपनी तरफ देखने को मजबूर कर देगा। हमें अपने कृत्य दिखाई देने लगेंगे और धीरे धीरे जो भी बेकार है, फिजूल है, व्यर्थ है वह आदत हमारी जिंदगी से चली जाएगी।

हम शांत भी रहेंगे। खुश भी रहेंगे। व्यर्थ की बातों में अपना धन ओर समय भी बर्बाद नहीं करेंगे। हमें अकेले आनंद और संतोष में जीने की कला मिल जाएगी।

इस प्रयोग को करके आप अपनी बेहोशी को देख भी सकते हैं और उसे दूर भी कर सकते हैं। अब से जब भी फोन पर बात करें अपने होश को देखते रहें। अपने शब्दों को देखते रहें। किसके संबंध में व्यर्थ की बात चल रही है उसको भी देखते रहें। आपको वर्तमान में जीने की कला हाथ लग जाएगी।

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"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़