हम बेहोश ना रहें
“We should not be Unconscious”
(Spiritual Story)
बुद्ध का मार्ग किसी का विरोध नहीं करता। जीवन को बहुत अमूल्य समझ कर इसकी हर सांस को कतरे कतरे को अस्तित्व से जोड़कर रखने की कला है। एक ऐसा समन्वय बनाना है कि हम अपनी जीवंतता को महसूस कर सकें। चौबीसों घंटे हमारे अंदर होश का दिया जलता रहे। हम बेहोश ना रहें संसार के पदार्थों को देखकर, इसके लुभावने पन को देखकर हमारे अंदर तृष्णा ना उठे।
यह संसार हमारे लिए और हमारे उपभोग के लिए ही है हमारे जीवंत रहने के लिए ही बनाया गया है मगर हम इसका उपभोग करने के बजाए इसकी तृष्णा और इकट्ठा करने की चाहत में अपना जीवन बर्बाद करके चले जाते हैं।
बुद्ध ने होश और जाग्रति को ही अपनी शिक्षा के जरिए, उपदेशों के जरिए समझाया। मनुष्य आंख खोले हुए ही, सोए हुआ सा व्यवहार करता है। वह हर कृत्य इतनी मूर्छा में करता है कि उसके परिणाम ही उसके दुख का कारण बन जाते हैं और वह उन दुखों से और दुख निर्मित करता है। उसकी पूरी जिंदगी ही दुख मय हो जाती है।
इसीलिए बुद्ध चार आर्य सत्यों की घोषणा करते हुए कहते हैं कि पहला आर्य सत्य की जीवन में दुख है। दूसरा आर्य सत्य की दुख का कारण है। तीसरा आर्य सत्य कि दुख का निरोध किया जा सकता है। और चौथा आर्य सत्य की दुख निरोध का उपाय, दुख निरोध गामिनी प्रतिपदा है जो “आर्य अष्टांगिक मार्ग है। इसके आठ अंग हैं। जिनको तीन मुख्य भागों में बांटा जा सकता है।
इसके तीन मुख्य स्तंभ हैं पहला – प्रज्ञा, दूसरा – शील, और तीसरा – एकाग्रता।
प्रज्ञा में सम्यक दृष्टि और सम्यक संकल्प को रखा गया है।
शील में सम्यक वाक्, सम्यक कर्मांत, और सम्यक आजीव को रखा गया है।
एकाग्रता में सम्यक व्यायाम, सम्यक एकाग्रता और सम्यक समाधि को रखा गया है।
इस तरह जो अष्टांगिक मार्ग के आठ अंग हैं –
प्रज्ञा –
सम्यक दृष्टि
सम्यक संकल्प
शील –
सम्यक वाक्
सम्यक कर्मांत
सम्यक आजीव
एकाग्रता –
सम्यक व्यायाम
सम्यक एकाग्रता
सम्यक समाधि