होश की थोड़ी बहुत चर्चा हम अपने पिछले लेख में कर चुके हैं। और साथ ही इसकी हमारे जीवन में कितनी महत्ता है, इसका भी हमने थोड़ा सा विवेचन किया था। यहां हम इसपर बहुत विस्तार से चर्चा करेंगे और होश को जगाने, ओर रोज-मर्रा की जिंदगी में इसको संभाल कर उपयोग करने से हम बहुत सारी मुसीबतों,दिक्कतों ओर समस्यों से अपने आपको बचा सकते हैं, इन सभी ब्यवहारिक तकनीकों पर भी बात करेंगे।
होश ( Awareness )-:
होश क्या है? जैसा हमने पिछले लेख में चर्चा की थी कि अगर होश नहीं है मन के द्वारा किये गए कार्यों के साथ, तो हम जो कुछ भी कर रहे हैं उसके अच्छे परिणाम तो दूर हम और भी बड़ी परेशानियों में उलझ जाते हैं और वो उलझने इतनी बढ़ जाती हैं कि एक कभी न खत्म होने वाली परिस्तिथि पैदा हो जाती है। होश को समझना आसान हो जाता है अगर हम पहले बेहोशी को समझ लें।
बेहोशी (unconsciousness) साधारणतया, हम बोलचाल में उपयोग करते हैं जब कोई किसी साधारण रोज़-मर्रा के काम को अच्छे से पूरा नहीं करता है तो हम उसे कहते हैं कि तुमने पूरे होश से ये काम नहीं किया, या बेहोशी में किया। मतलब अगर में पूरी लगन(concentration) से किसी काम को नहीं कर रहा हूँ तो मुझे उसका पूरा रिजल्ट नहीं मिलेगा या नकारात्मक परिणाम मिलेगा।
मन को एक सांचे में ढाल देना ( Conditioning of the Mind)-:
आज हम एक ऐसी ब्यवस्था में जी रहे हैं जहां पैदा होते ही से बच्चा बेहोशी की आदत पकड़ लेता है। बच्चों को स्कूल में होड़(competition) सिखाया जाता है। जल्दी(hastiness) सिखाई जाती है। एक साथ कई काम (multi-tasking ) पर जोर दिया जाता है । ये चीजें बच्चे के मन पर बैठ जाती हैं, competition से उसके अंदर की सेंसिटिविटी, compassion, empathy पनप नहीं पाती और वो बहुत ही कठोर(harsh, rude) हो जाता है। दूसरा hastiness जल्दबाज़ी ये एक रोग है जो उसमें बचपन से ही डाल दिया जाता है। जल्दबाजी से उसके अंदर होश को पकड़ने की ताकत कम हो जाती है।multitasking से जब ध्यान बंटा रहेगा कई कामों में तो क्या होश रहेगा, वो अनदेखी (overlook) करने लगता है। बहुत सारी चीजें उसकी समझ ही नहीं आती उसका focus ही नहीं बन पाता, और बचपन से ही उसके अंदर बेहोशी के गुण पनपने लगते हैं जो उसको उसकी प्रकृति (original face) से दूर कर देते हैं और वह एक सोयी-सोयी, खोई-खोई जिंदगी जीने लगता है और न जाने कितनी ही उन आदतों में उन परिस्तिथियों में फंस जाता है जिनसे बहुत आसानी से बचा जा सकता था।
मन पर अभिभावकों का प्रभाव ( Expectations of Parents)-:
स्कूल के अलावा घर में माँ-बाप, जो उसके पैदा होने से पहले ही प्लानिंग कर चुके हैं कि उन्होंने उसको क्या बनाना है। माँ-बाप को यह खबर नहीं कि ये कोई आपका रोबोट नहीं है ये अपनी destiny लेकर आया है। लेकिन माँ-बाप का प्रेशर उसको ignorant बना देता है,रोज़-मर्रा की टोका-टॉकी उसके होश पर चोट मारती है और वह ध्यान देना कम कर देता है, इससे होश की जगह बेहोशी बढ़ने लगती है।
मन पर सामाजिक प्रभाव ( Effect of Social Conditioning on the Mind)-:
आज का सामाजिक जीवन, रहन-सहन, खान-पान ये सभी उसकी बेहोशी बढ़ाने में सहायक हैं। ऐसो-आराम की जिंदगी के कारण उसका शारीरिक श्रम कम हो गया है । बाहर का तापमान 40 डिग्री है अगर तो वो 20 डिग्री में AC में बैठा है। इससे उसका मन सुस्त हो रहा है। कभी आपने ख्याल किया होगा जब आप कोई game या morning walk से आते हैं तो कितने फ्रेश होते हैं । क्योंकि ब्लड सर्कुलेशन ऑक्सिजन का लेबल अच्छा हो गया है। इससे होश बढ़ने लगेगा, ऑक्सिजन एक्टिव करता है लेकिन हमारी जिंदगी अब gazzetts पर टिकी है। बचपन से ही हम मोबाइल,या tv पर बैठे हैं घंटों, ये हमारी बहुत बड़ी बेहोशी का कारण है। हमारे दिमाग की processing ही कम हो चुकी है। हम कट एंड पेस्ट वाली लाइफ, फारवर्ड
(forward) करने वाली लाइफ जी रहे हैं दिमाग पर जोर ही नहीं डालना,ओर इतना violence and sex हम देख रहे हैं media में कि हमारी बेहोशी दिन-रात बढ़ रही है।
मन और शरीर पर हमारे खाने का प्रभाव ( Food can Effect the Mind & Body)-:
हम क्या खा रहे हैं, हमें होश ही नहीं है। अगर कोई बताता भी है तो भी हमें कोई और विकल्प समझ नहीं आता । ये जंक फूड वाली जिंदगी जिसमें शरीर के लिए कुछ भी नहीं है बीमारियों के सिवाय, वो हमारी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। आपको पता है आप कितना नमक खा जाते हैं इन जंक फूड के जरिये ओर कितना शुगर? आपको पता चलेगा तो आप हैरान हो जाएंगे, पूरे हफ्ते भर जितना नमक चाहिए उतना आप पूरे दिन के जंक फूड से ले लेते हो। सोचो ! ये नमक बॉडी से पानी को खिंचता है dilute होने के लिए ओर आपकी बॉडी में पानी की कमी होने लगती है,पानी की कमी होते ही, आपकी बॉडी जिसमें लगभग 75-85%पानी है, ये कई प्रकार की बीमारियों का घर बनने लगती है। लेकिन आपको इसका कोई एहसास नहीं, इसी तरह शुगर है।
एक दिन में जितना बॉडी को शुगर चाहिए हम उससे कई गुना ज्यादा इन जंक फूड से, कोल्डड्रिंक से ले रहे हैं। पूरी बॉडी नमक और पानी के equilibrium पर टिकी है ओर जैसे ही ये बैलेंस बिगड़ता है शरीर रोगों का घर हो जाता है। ओर आपने नोटिस किया ही होगा कि जब भी आप बीमार होते हैं आप बेहोशी की सी हालत में होते हैं,किसी चीज में आपका मन नहीं लगता, सुस्ती, बेचैनी बनी रहती है। आप सुनकर हैरान हो जाएंगे कि बड़े शहरों में रहने वाले लोगों पर किये गए एक सर्वे के अनुसार 75-80% लोग 5kg से लेकर 25kg तक ओवर वेट हैं।
आप सोचो जब आपके शरीर में ज्यादा वजन होगा तो हार्ट को पम्पिंग में भी ज्यादा एनर्जी चाहिए, आपको चलने में एक्स्ट्रा वेट को कैरी करने में ज्यादा एनर्जी चाहिए। और ये सब जो में आपको कह रहा हूँ ये हमारे होश को कम करता है और हम बेहोशी की सी जिंदगी जीते हैं। बेहोशी से क्या होता है ? कैसे हमारे कार्यों में उसके परिणाम आते हैं, कैसे हम मुसीबतों में फंस जाते हैं इसको मैं आगे उदाहरणों में बताऊंगा जो हम सब पर लागू होते हैं।
इसी तरह सामाजिक-ब्यवस्था जिसमें हम जी रहे होते हैं वो हमें बेहोश रखती है। इतने superstitions, अंधविश्वास हैं जिनपर ये कभी सवाल ही नहीं उठाता, बल्कि उसका हिस्सा बन जाता है, इतनी कुरीतियां हैं कि जो इसको होश में ही नहीं आने देती, ये उनका हिस्सा बन जाता है।
मन पर प्रतियोगिता का प्रभाव ( Effect of Competition on the Mind)-:
अब किसी तरह पढ़ाई पूरी करते हैं फिर गला-घोंट प्रतियोगिता है, इतना प्रेशर है कि अगर तेजी न दिखाई तो success नहीं मिलेगी। जॉब मिलती है तो वर्क प्रेशर इतना है कि पता ही नहीं चलता कब सुबह से शाम हो जाती है। फिर इस प्रेशर को दूर करने के लिए मजबूरी बस वो रिलेशन में फंसता है। जिससे रिलेशन बनता है वो भी तो उसी तरह सोया हुआ है, अब दोनों एक-दूसरे से प्यार खोज रहे हैं, दोनों बेहोश। सोचो? इसलिए कुछ दिनों बाद ही फिर breakup हो जाता है। अब वो ड्रग्स का या कोई और सहारा लेने लगता है, और भी ज्यादा बेहोशी पकड़ लेती है बुद्धि काम करना बंद कर देती है और धीरे-धीरे बेहोशी के परिणाम आने लगते हैं। जब वो सब जगह से टूट जाता है तब वो यह कहने लगता है कि How to control the mind? माइंड कंट्रोल के पहले लेख में हमने होश का जिक्र किया कि ये होश ही है जो माइंड को पकड़कर रखता है। और माइंड है जो बिना होश के एक बेलगाम घोड़े की तरह है। यहां आकर, इतना थक-हारने के बाद इंसान कहता है होश कैसे बनाये रखें। यहां से यात्रा प्रारंभ होती है होश की।
मन की शांति की खोज( Search for Mental Peace)-:
ये आप न सोचें कि इससे आप ही पीड़ित हैं। आज से लगभग 5000 वर्ष पहले भगवान श्रीकृष्ण से अर्जुन ने प्रश्न किया था कि ये मन जो हवा से भी तेज है इसको बस में कैसे किया जा सकता है? भगवदगीता में इसका उल्लेख है, कहते हैं कि निरन्तर अभ्यास से किसी योगी, जिसने साधना के जरिये निरन्तर अभ्यास से इस पर अंकुश पा लिया हो, से युक्ति लेकर साधना में लगना चाहिए, निरन्तर ध्यान (meditation) से इसपर काबू पाया जा सकता है। ये कठिन जरूर है पर असम्भव नहीं।
आज से लगभग 2500 साल पहले बुद्ध आये,उन्होंने भी इस मन को काबू करने के , ध्यान के माध्यम से कई तरीके बताए।
मेरे कहने का भाव यह है कि मनुष्य इस समस्या से हमेशा ही जूझ रहा है, परिस्थितियां ऊपर-नीचे हो सकती हैं तब के और आज के समाज में फर्क हो सकता है मगर मन उस समय भी मनुष्य पर हावी था। जबकि तब विज्ञान एवम तकनीक (science-technology) का इतना विकास नहीं था। मन के इतने भटकने की सुविधा नहीं थी, फिर भी मनुष्य परेशान था। अब हम बात करेंगे कि, आप अपनी जिंदगी को देखें, आसपास के वातावरण को देखें, कैसे बहुत थोड़े से होश से आप कितनी बढ़ी समस्याओं से बच जाते हैं। जैसे:-
होशपूर्ण मन के दैनिक जीवन पर अच्छे प्रभाव
( Good effect of Awareful Mind on the daily routine)-:
1) आप अगर सुबह जल्दी उठने की आदत डालें तो आप टाइम से पहले आफिस पहुंच सकते हैं । और जो धक-धक (hastyness)से आप बेवजह बसों, ट्रेनों में लोगों को धक्का मारते हैं,जिससे कई बार आपको शर्मिन्दगी भी महशुश होती है, इससे बहुत ही आसानी से बचा जा सकता है। और आप बहुत ही रिलैक्स स्टेट में अपने आफिस पहुंच सकते हैं।
2) इस जल्दबाजी की आदत से आप कभी-कभी अपना जरूरी सामान भूल जाते हैं जैसे- आफिस जाते समय लंच-बॉक्स,फिर बाहर का खाना खाना पड़ता है,फिर लोग बीमार हो जाते हैं। लेकिन हम यह नहीं सोच पाते कि मेरी थोड़ी सी बेहोशी की वजह से ये सब हुआ,बल्कि हम दोष दूसरे पर डाल देते हैं ।
3) आप shoping के लिए गए काउंटर पर क्रेडिट कार्ड भूल आये, या खरीदा सामान। अब सोचो बिना किसी बात के आपने कितनी बड़ी मुसीबत ले ली, अब आप इतने परेशान हैं कि आपकी वजह से घर के लोग परेशान हो चुके हैं, आपका BP बढ़ चुका है, उस कार्ड को stop कराने में। ये सब हुआ जल्दबाजी में, अंदर दिमाग मे कुछ और चल रहा है इसलिये slip कर गया। ये जो अंदर मन में हम लगातार बोल रहे हैं (chattering) चलती है ना, ये उसका परिणाम है। हम वहां हैं ही नहीं सिर्फ शरीर है, हम कहीं और हैं। इस बेहोशी से हम बेवजह बहुत दुख उठाते हैं।
4) स्कूल में सिगरेट पीनी शुरू कर दी बेहोशी में,बिना किसी परिणाम को सोचे हुए, अब आज खर्चा पूरा ही नहीं होता, जॉब नहीं है, या बीमार हो गए, अब घर के सारे लोग हॉस्पिटल के चक्कर लगा रहे हैं। पब्लिक प्लेस में पीते हैं कई बार झगड़ा हो जाता है। देख रहे हैं आप छोटी सी बेहोशी में लिए गए फैसले कैसे आदत बन जाते हैं। ओर हमसे जुड़े कितने लोग बेवजह ही दुखी हो जाते हैं।
5) इस बेहोशी का असर छोटे बच्चों पर पड़ने लगता है घर में। फिर आप उनके लिए परेशान होने लगते हैं। बात-बात में घर में छोटी-छोटी बातों पर झगड़ना, धीरे-धीरे हमारे rationally सोचने की आदत खत्म हो जाती है, हम decisive नहीं हो पाते, रोज़मर्रा के decision भी हम नहीं नहीं ले पाते हैं और confusion में ओर ज्यादा गलत कर जाते हैं। फिर दुख उठाते हैं।
6) आपने मास्क नहीं लगाया,भूल गए,आपने शीट बेल्ट नहीं लगाई पुलिस ने पकड़ लिया। सोचो कितनी छोटी-छोटी चीजें हैं जो सिर्फ होश पर टिकी हैं और उसके परिणाम कितने भयानक हैं कि आपको मेहनत से कमाया हुआ पैसा भी खर्च करना पड़ता है और दुख भी उठाना पड़ता है। जिससे बहुत ही आसानी से बचा जा सकता है। अब आप समझ ही गये होंगे, अगर अपने को देखेंगे तो ख्याल में आएगा कि ये सब हमारी रोज़मर्रा से जुड़ी हुई बातें हैं।
आगे के पार्ट-3 के लेख में हम कुछ व्यवहारिक बात करेंगे कि कैसे हम अपना होश जगा सकते हैं।और बहुत ही खूबसूरत जिंदगी जी सकते हैं।
To be continued…