पश्चाताप व स्वीकार भाव “Remorse & Acceptance” (Motivational Thoughts)

पश्चाताप व स्वीकार भाव “Remorse & Acceptance” (Motivational Thoughts)

पश्चाताप व स्वीकार भाव

“Remorse & Acceptance”

 

(Motivational Thoughts)

 

बुद्ध हमें अपने दिनों के एक उदाहरण से समझाते हुए कहते हैं एक व्यक्ति ने काले कपड़े पहने हुए हैं। उसके बाल बिखरे हुए हैं। वह अपने कंधे में मूसल लिए हुए है और कहता है कि मैंने निंदनीय कृत्य किया है मुझे मूसल से मार डालो। ऐसा वह समाज के बीच में कहता है।

वह यह भी कहता है कि मैं आगे से वही कृत्य करूंगा जो आपको प्रिय लगे। वह अपने किए हुए कृत्य का पश्चाताप करता है और आगे ऐसा कृत्य न हो इसके लिए समाज के सामने सामाजिक हित और प्रिय की बात करता है।

ऐसा ही एक भिक्षु या भिक्षुणी होती है जो अपने गलत कृत्यों के लिए भय करती है कि कहीं उससे जाने अनजाने में भी कुछ गलत न हो जाए जो उसके बंधन का , दुख का कारण बन जाए।

पंचशील के नियमों के प्रति भी इसी प्रकार की सावधानी रखनी होती है। एक भिक्षु पंचशील को अपने जीवन में धारण करता है तभी उसका उत्थान हो सकता है सत्य के मार्ग पर, या कह लें धम्म के मार्ग पर।

इसलिए एक धम्म का अनुयायी हमेशा ही गलत कृत्य के प्रति, गलती के प्रति भयातुर रहता है। ये भी उसकी साधना का ही एक हिस्सा है।

हमें भी अपने जीवन में सत्य , धम्म के प्रति इतना सचेत और गलत कृत्य के प्रति भयभीत और सावधान रहना चाहिए।

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"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़