मन को पीढ़ा आवश्यक है
“Pain is needed”
(Motivational Thoughts)
जिसको पीड़ा होती है वही समझता है कि दर्द कितना होता है अन्यथा सब बातें ही बातें हैं। जब तक पीड़ा ना हो, तब तक दूसरे की पीड़ा को देखकर दर्द का एहसास रत्ती भर हो भी भला, मगर अनुभव के बिना पूरा एहसास नहीं होता। हम सांत्वना तो दे सकते हैं किसी को दुखी देखकर, पीड़ा में पाकर, मगर वह सांत्वना मानवता के नाते ही होती है।
जीवन का नियम भी कुछ ऐसा ही है जब व्यक्ति पीड़ा में होता है परेशानी में होता है तब वह अपनी तरफ देखता है। उसका तीर अपनी तरफ होता है और पहली बार उसको अपने को देखने, अपने को समझने का मौका मिलता है। अन्यथा पूरी जिंदगी मनुष्य बाहर की तरफ देखता है। दूसरों को देखता है। दूसरों को देखकर जजमेंट देता है जोकि उसका अपना व्यक्तिगत अनुभव नहीं होता।
जब व्यक्तिगत अनुभव होता है तब पहली बार वह अपनी तरफ देखता है उसको अपने अंदर चल रहे विचारों का पता चलता है अपने मन का पता चलता है। पीड़ा से मनुष्य के अंदर संवेदनशीलता भी बढ़ती है और मानवता का भी प्रादुर्भाव होता है।
शायद यही कारण है कि सभी ज्ञानी महापुरुषों ने दुख और पीड़ा को परमार्थ का आधार बताया।