क्या जीवन में दुख ही है
Is Only Suffering in Life
(Motivational Thoughts)
बुद्ध ने इस दृश्य संसार के तीन लक्षण बताए और किसी भी विवेकशील व्यक्ति को इन तीनों लक्षणों का ध्यान अवश्य आता है।
पहला, यह संसार अनित्य है! इसकी कोई वास्तविकता नहीं है। यह बदलता रहता है।
दूसरा, दुख! क्योंकि यह बदलता रहता है इसीलिए इसका अंत दुख में ही होता है।
तीसरा, अनात्मता! यहां कुछ भी “मैं” कहने जैसा नहीं है। क्योंकि हमारा यहां कुछ भी नहीं है। हमारा किसी भी विषय वस्तु पर, यहां तक कि इस शरीर पर भी कोई वश नहीं है कि जिसको मैं अपना कह सकूं। यह सब कुछ ही अनात्म है।
जब सब कुछ ही बदल रहा है तो इसको मैं और मेरा कहना अज्ञानता ही है और जो नहीं बदलता वह सत्य है जिसका हमें कोई आभास जीवन में नहीं होता।
जितना हम इसको वास्तविक समझते हैं उतनी ही यहां के भोग पदार्थों को पा लेने की दौड़ बढ़ती जाती है और जीवन धीरे धीरे चुकता जाता है।
क्योंकि जीवन की एक निश्चित अवधि है और धीरे धीरे तृष्णा की इस दौड़ में यह जड़ होने लगता है और जो भी भोग पदार्थ इसने अपने को सुरक्षित करने के लिए बनाए थे अब यह उनको पकड़ कर बैठ जाता है।
मनुष्य का विवेक अन्त समय में बिल्कुल ही शुन्य वत हो जाता है।