गुरु कुम्हार है
“Guru like a Potter”
(Spiritual Story)
एक सम्यक समबुद्ध या तथागत जब किसी व्यक्ति को अपना लेता है तो फिर उसे छोड़ता नहीं। उसे गढ़ता है। अद्वितीय बना देता है। और निरंतर एक हाथ से सहारा देता है और दूसरे हाथ से थपथपाते रहता है। जैसे एक कुम्हार बर्तन बनाता है तो उस बर्तन को अंदर से हाथ का सहारा देता है मगर बाहर से उसको चोट मारता रहता है ताकि उसको वह आकार दिया जा सके जैसा वह चाहता है।
वह बर्तन की नहीं सुनता बल्कि अपने ही जैसा बर्तन बनाता है। यही एक गुरु की खूबी है। उसको एक आकार देता है। उसके मन को एक आकार देता है। उसको ध्यान के सांचे में डालता है। और उसको शील के सांचे में डालता है। उसको निरंतर घुमाता रहता है। आकार देता रहता है।
जब वह मन रूपी बर्तन एक सांचे में, आध्यात्मिक सांचे में ढल जाता है। फिर वह उसे आग की परीक्षा में डालता है। उसको संसार के, इस भवसागर के हिलोरों में डालता है ताकि वह पक सके। मजबूत बन सके। यही एक सच्चे गुरु की, तथागत की पहचान है कि वह उसका साथ नहीं छोड़ता।