बुद्ध के उपदेश “क्रोध”
“Anger”
(Motivational Thoughts)
जब हम मन में उठ रहे विचारों के प्रति जागरूक होने लगेंगे उसी दिन हमारा अपने कर्म पर भी नियंत्रण होने लगेगा और अपनी इंद्रियों पर भी नियंत्रण होने लगेगा।
क्रोध की ज्वाला मनुष्य को जलाकर राख कर देती है। यह एक ऐसी आग है जो दो तरफा नुकसान करती है। एक ओर मनुष्य अपने शरीर और मन का नुकसान झेलता है। वहीं दूसरी ओर बाहर उस धधकती आग में जो कर्म कर बैठा है उसका नुकसान झेलता है। और नुकसान इतना बड़ा है कि जिसको चुकाने में शायद यह जन्म भी कम पड़ जाए।
बुद्ध धम्मपद में कहते हैं “जो उत्पन्न हुए क्रोध को चलते हुए रथ के समान रोक लेता है उसे मैं सारथी कहता हूं, लगाम पकड़ने वाले तो दूसरे लोग हैं।”
इसीलिए मनुष्य को ध्यान के जरिए अपने मन में उठ रहे हर विचार को देखना चाहिए। यही ध्यान है। ध्यान का अर्थ इतना ही नहीं है की आंख बंद करके किसी मंत्र का जाप कर लिया जाए बल्कि ध्यान बहुत व्यापक है।