विश्व हिंदी दिवस
“World Hindi Day”
(Hindi Poetry)
हिंद की
हिंदी के बोलों ने
कवियों के व्यंग और छंदों ने
पत्थर पड़े से दिलों पर
संघात किया है
नव जीवन का
सूत्र पात किया है
यूं कैसे मर जाएगा कोई
बिना विरोध किए
प्राणों को
कैसे त्यागेगा कोई
मां की ममता
जिह्वा से तो फूटेगी ही
यूं कैसे मर जाएगा कोई
बिना तड़पे, छटपटाए
कैसे दम तोड़ेगा कोई
जो रग रग में है
उभर उभर कर
आ ही जाएगा
यूं कैसे मर जाएगा कोई
जब तक जड़ है जमीं में
नई कोंपलें फिर आ जाएंगी
मौसम जब करवट बदलेगा
कली खिलेगी, फूल खिलेंगे
भौंरे घूमेंगे, तितली झूमेगी
यूं कैसे मर जाएगा कोई
कोई बाहर से
खरपतवार लेकर
डाल गया खेतों में जैसे
चुपके से
खाद और पानी देकर
चला गया अपनी बस्ती में जैसे
तब से लेकर अब तक
जूझ रही है हिंदी
फिर भी यूं ही
कैसे मर जाएगा कोई
हिंद की हिंदी है ये
जब तक इस मिट्टी में
ऊर्जा है प्रजनन की
तब तक नहीं दम किसी में
जो उखाड़ फेंके भाषा को
हिंदी हैं हम
जब तक वतन है
यूं ही नहीं मर जाता है कोई