“शबनम को भी खबर कहाँ कि
दिनकर की पहली किरण काफी
है मिट जाने को “
जीवन का मकसद
“Object of Life”
(Hindi Poetry)
ज्यादा जी लेने से ही
क्या जीवन का मकसद
पूरा हो जाता है !
जब सुख-दुख
साझा ही न हों
हंसी-खुशी का
सहारा ही न हो
बिना त्वरा, मरा-मरा सा
ज्यादा जी लेने से ही
क्या जीवन का मकसद
पूरा हो जाता है……..
मिल -बाँट कर खाना
नाचना – गाना – मुस्कराना
खेलना-खिलाना, संगीत –
उत्सव मनाना, ऐसा कुछ न हो
तो ज्यादा जी लेने से ही
क्या जीवन का मकसद
पूरा हो जाता है……..
मैं तो वही हूँ
जो जीवन -भर संजोया है मैंने
कुछ खुशी, कुछ गम
कभी चमकती आंखें, कभी नम
कभी फूल, कभी काँटे
कभी शाबासी , कभी डांठै
कितना भारी-भरकम बोझा है
गर इस बोझे का
बैलेंस ही न हो तो
ज्यादा जी लेने से ही
क्या जीवन का मकसद
पूरा हो जाता है……..
कतई आसान नहीं है डगर
मग़र जिंदगी से सीखने की
ललक हो अगर
तो “मैं”को किनारे रख “तूराज़”
रोज़ एक नन्हे बच्चे से सीख
नन्हा सा बनकर
तो थोड़ा कम, जी लेने से भी
जीवन-मुक्त का अनुभव
हो जाता है……..
तूराज़……✍❤