परछाई
“Shadow”
(Hindi Poetry)
जीवन के हर सुख दुख में मैंने
अपनी परछाई को देखा
मैं जब जब भी नाचा हूं खुशी में
मैंने उसको भी नाचते देखा….
जब जब भी मैं दुख में डूबा हूं
बंद कमरे में घुटता हुआ भी
दामन पकड़े मैंने उसको देखा…..
वह अंग संग है मेरे जन्म से
सब बदल गया है अब तक
पर उसको वैसे का वैसा ही देखा…
खामोश है मेरे वह हर कर्मों से
कभी उसका कोई दखल नहीं
मेरी मन मर्जी का हश्र मैंने
उसको भी भुगतते देखा….
पूरा जीवन चोली दामन सा है
फिर भी कोई बात नहीं
कैसा रिश्ता है यह
जिसमें कोई बदलाव नहीं….
मैं यह सोचता हूं कभी!
क्या जब मैं मर जाऊंगा
साथ मेरे यह चल पाएगा
या इंतजार करेगा
मेरे लौट आने का??
(तुराज)