“आत्म-चिंतन (Self Reflection)”
(Hindi Poetry)
“ओस की बूंद का, दिनकर के आगे क्या परिचय ! कौन हूँ मैं, मेरा अपने से क्या परिचय!”
अनंत श्रंखला है शायद
मेरे आने-जाने की
कितने बागों में अब तक
फूल बनकर
महका था मैं शायद
भोरों की गुंजन
अब तक कानों में है मेरे
कितना मधु बांटा
धरा पर है
गंध बिखेरी
पूरब से लेकर दक्षिण तक मैंने
फिर, जब भी मैं
लौट कर आता हूँ
क्यों? तन्हा-तन्हा सा
पाता हूँ अपने मैं
अनंत शृंखला है शायद
मेरे आने-जाने की
सब जाना-पहचाना सा लगता है
ये धरती, ये अम्बर
फैर्रिस्त बहुत लम्बी है
अपनी कारगुजारी की
पर, मन न भरा
अब तक भी
कुछ करने को है
कब तक?
ये सब करने को है
इसीलिए-शायद
अनंत शृंखला है
मेरे आने-जाने की
कौन हूँ मैं ?
~ तूराज़