सरिता : “River” (Hindi Poetry)

सरिता : “River” (Hindi Poetry)

सरिता

River”

(Hindi Poetry)

देखता हूं तट पर खड़े

सरिता को बनाते रास्ते

बड़ रही सागर की तरफ

कुछ पुण्य का भाव लिए

सूखता तरुवर कहीं पर

पुकार रहा हो प्राण से

या प्यास से कोई प्राणी

जीवन अपना छोड़ रहा

जब धरनी के अधर-

सूखकर फट रहे हों

कहीं सूखी फसल पर

किसान माथा पीट रहा हो,

ये चल पड़ी अब,

दुख – भंजन बन

हिम – खंडों को चीरती

लक्ष्य लिए माथे पर अपने

सबका कष्ट निवारण करने,

पता लिए उस सागर का भी

जिसमें मर मिट जाना है इसको

पर मिटते – मिटते भी “तुराज़”

लिख जानी है गाथा इसको

देखता हूं तट पर खड़े….

तुराज़…..✍️

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"प्रेम" मुक्त-आकाश में उड़ती सुगंध की तरह होता है उसे किसी चार-दिवारी में कैद नहीं किया जा सकता। ~ तुराज़

6 comments

  1. Turaaz says:

    Thanks for your valuable feedback and appreciation all the time.
    Warm regards
    🙏🙏❤️

  2. Turaaz says:

    आपका सहर्ष धन्यवाद,
    आपके उत्साहवर्धन से और लिखने की प्रेरणा पैदा होती है।
    प्रणाम 🙏🙏❤️

  3. Turaaz says:

    Thankyou
    Dear Reader,
    Your prompt response gives me strength and immense pleasure to write better content.
    With regards 🙏🙏❤️