सरिता
“River”
(Hindi Poetry)
देखता हूं तट पर खड़े
सरिता को बनाते रास्ते
बड़ रही सागर की तरफ
कुछ पुण्य का भाव लिए
सूखता तरुवर कहीं पर
पुकार रहा हो प्राण से
या प्यास से कोई प्राणी
जीवन अपना छोड़ रहा
जब धरनी के अधर-
सूखकर फट रहे हों
कहीं सूखी फसल पर
किसान माथा पीट रहा हो,
ये चल पड़ी अब,
दुख – भंजन बन
हिम – खंडों को चीरती
लक्ष्य लिए माथे पर अपने
सबका कष्ट निवारण करने,
पता लिए उस सागर का भी
जिसमें मर मिट जाना है इसको
पर मिटते – मिटते भी “तुराज़”
लिख जानी है गाथा इसको
देखता हूं तट पर खड़े….
तुराज़…..✍️
Beautiful as always 😇🙏🌹
Thanks for your valuable feedback and appreciation all the time.
Warm regards
🙏🙏❤️
True justification of river..!!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति दी है अपने 🌊🌊🌊
आपका सहर्ष धन्यवाद,
आपके उत्साहवर्धन से और लिखने की प्रेरणा पैदा होती है।
प्रणाम 🙏🙏❤️
Thankyou
Dear Reader,
Your prompt response gives me strength and immense pleasure to write better content.
With regards 🙏🙏❤️