“दहशत कोविड-19 महामारी की (Panic Of Covid-19 Pandemic)”
(Hindi Poetry)
“ख़ौफ़ के मंझर भी अजीब होते हैं, कभी कौऐ चमगादड़ से, तो कभी दीवालों पे भी साये से दिखाई देते हैं “
अभी तो पता ही चला था
अभी जाता-जाता सा क्यों है
कितने ही दिखते थे अपने मुझे,
यहाँ इक दौर में
अब गिनती में, कम से क्यों हैं
कभी सुबह से शाम तलक
जश्न-ए-महफिल, चला करती थी
बेलगाम वक्त का कांटा
अब थमा-थमा सा क्यों है
अभी तो पता ही चला था
अभी जाता-जाता सा क्यों है
कौन आया है शहर में ऐसा,
कि कोई शोर ही नहीं,
न मंदिरों में शंख-नाद है
न मस्जिदों में अजान है
ख़ौफ़ इतना है हर-तरफ,
कि चेहरा उड़ा-उड़ा सा है
बेलगाम वक्त का कांटा
क्यों थमा-थमा सा है
अभी तो पता ही चला था
घर छोड़ने की जिद छोड़
बेघर से घर बेहतर है,
रोशनी की तू कर फिक्र
इस बार अमावस,
लंबी सी है
बेलगाम वक्त का कांटा
थमा-थमा सा क्यों है
अभी तो पता ही चला था
किसको सुनाएं,
फरयाद और पुकार अपनी
हर तरफ सन्नाटा सा जो है
कोई एक्का-दुक्का,
दिखता भी है कभी तो
चेहरे पर मास्क लगाए क्यों है
ख़ौफ़ इतना है कि शहर में
सन्नाटा सा पसरा क्यों है
बेलगाम वक्त का कांटा
थमा-थमा सा क्यों है
अभी तो पता ही चला था
अभी जाता-जाता सा क्यों है
~ तुराज़