“रहस्यमय रचना (Mysterious Creation)”
(Hindi Poetry)
“एक बाज़ार सा लगा दिखता है हर कोई कुछ दे जाता है, कुछ ले जाता है रहस्य तो ये है, घर तक आते-आते थैला खाली हो जाता है, सब कहां जाता है ?“
जो कुछ भी होता है यहां
उसका क्या मकसद
होता है….?
दिन, बार, व्रत, त्योहार
पूनम, अमावस,
कीट-पतंग, नभचर, थलचर,
मानव, किन्नर, गुरु-ज्ञानी, देव-महादेव
के अविरल आने-जाने का
क्या मकसद होता है ?
हवा, पानी, सूरज, चांद, नदी-नाले
जीव-जंतु ,पेड़-पौंधे,
चलते ही जाते हैं।
इस आने जाने का
क्या मकसद होता है ?
देश-दुनिया, धर्म, समाज-सभ्यता
जाति-वर्ण,काला-गोरा सब वहीं है
अनंत युगों से, फिर
इनके खातिर लाखों लोगों के मरने का
क्या मकसद होता है?
हर जीव अपनी-अपनी दौड़ में है-
चींटी हो, मधुमक्खी या मानव
सब इकट्ठा करते ही जाते,
घर बनाते, प्रजनन करते,
अपनों और अपनी
चिंता में मर जाते,
कहां चले जाते हैं ?
फिर इस सब आने-जाने का
क्या मकसद होता है?
गुरु-ज्ञानी, पीर-पैगम्बर, ऋषि-मुनि
ज्ञान बखारे , आते-जाते रहते हैं
खबर आती है रोज़
या आएगी ही
अपना गया कोई, अपना-अपना करके
“तूराज़” नाम भी
निश्चित ही है इस कतार में
फिर इस मैं-और-मेरी का क्या
मकसद होता है ??????
~ तूराज़