मैं जीवन हूं
“I am Life”
(Hindi Poetry)
मैं जीवन हूं
मेरा कोई लक्ष्य नहीं
मैं बनता हूं, मिट जाता हूं
फिर पुनः बन जाता हूं
मिट्टी से बनकर, फिर से
मिट्टी ही बन जाता हूं
स्वाद, गंध, रस
लेकर ही आता हूं
सब लुटा कर फिर
खाली ही चला जाता हूं।
हवा, पानी, अग्नि,
मिट्टी और आकाश
कुदरत से ही
मिलता है मुझको
फिर उसमें ही
समा जाता हूं।
में और मेरा
कौन कहता है मुझ में
मुझको पता ही नहीं
मैं तो जैसे आता हूं
वैसे ही चला जाता हूं।
न तो आने का
कोई पता है मेरे
न जाने की कोई खबर
फिर भी शोर
बहुत है दुनियां में
मेरे आने और जाने का
कोई रोता है, कोई हंसता है
फिर सब पहले सा ही
हो जाता है।
हक तो जताता है माली भी
लगाता है जब बीज कोई
खबर नहीं उसे भी कल की
या तो चिड़िया के चुग जाने की
या फूल की महक
हवाओं में उड़ जाने की।
यही आशा और भरोसा
संसार चलाए जाता है
जानकर भी कि
नहीं कोई किसी का
अपना – अपना कहे
चला जाता है।
तुराज़…..✍️
क्या खूब लिखा है ✨✨
आपका बहुत बहुत धन्यवाद,
आपकी प्रेरणा और अधिक लिखने का बल देती है।
आभार🙏🙏