“मौत का डर (Fear Of Death)”
(Hindi Poetry)
कब किसने सोचा था,
की थम सी जाएगी दुनिया
अपनों से अब तक बचा सा रहता था, मैँ
वक्त के बहाने
आज अपनों से ही डर गया हूँ, कितना
खाक में मिलते हुए मंझर का खौफ़ है इतना
की
घर में दुबक के, वक्त के हाथों
मंजूर है पीटना
घर से झाँकने में भी डर है,
इतना की
हर साँस मैं आती हवा, मौत की याद दिलाती
है कितना
कभी वक्त को कोसता था इतना “तुराज”
आज वक्त के हाथों मजबूर है, कितना
किस को सुनाऊँ दास्ताँ-ऐ- पल पल की अपनी
इस घर के अंदर
हर कोई मेरा अपना बनकर, कुतर सा रहा है
मुझे कितना
आखों में इतना खौफ़ लिए दिखते हैं लोग कि
रूह कहती है, मत निकल
कहीं मौत का देवता, तुझे बना न लें अपना
~ तुराज़