“ महकती ही रहे फिजा यूं ही तेरी मुस्कान से
प्रभु ने तुझे बनाया ही है इसीलिए”………
फूलों की सी दुनिया होती
उसमें मुस्कराता फूल होता “मैं”
तो माली कितना खुश होता…..
ऊषा की पहली किरण में
चटकी कली को देख आंगन में,
भौंरों की गुंजन, जब कानों पर पड़ती
तितलियाँ इतराती, मंडराती, बलखाती
घर के नन्हें बच्चे पीछे ही पड़ जाते
तो माली मन्द-मन्द मुस्काता जाता
कितना खुश होता…..
जब धीमी-धीमी सी खुशबू
महकती फिजा में
सबका मन हर्षित-पुलकित हो जाता
बार-बार बाल-मन अंदर से कहता
“छूकर देख, नाक बड़ा, खुशबू ले ले”
जो भी राह-गुजरता, कसिस उसको
पास ले आती
माली मन्द मन्द मुस्काता जाता
कितना खुश होता…..
पूरे दिन गुंजन रहती आंगन में
मधु लूटने वालों की
“मैं” लुटाता ही जाता
फैलाता ही जाता पराग-कणों को
सारी दुनिया में परचम सा लहराता
माली मन्द मन्द मुस्काता जाता
कितना खुश होता…..
अपनी रंग-बिरंगी दुनियां होती
रंग-बिरेंगे मिलने वाले होते
बसन्त और फाग का हर पल
कितना अचरज, अलबेला होता,
जब होली पर रंगों में
मद-मस्त, झूमती दुनिया,
मैं रंग-इत्र बन अमर हो जाता
मेरे अनन्त बीजों से
फिर उपवन खिलता
माली मन्द-मन्द मुस्काता जाता
कितना खुश होता…..
“मैं” बन्दनवारों में सजता
परिणय में बर-माला बन मुस्काता
कहीं बीमारों का गुलदस्ता बन
खुशी भर देता प्राणों में उनके
कहीं मृत-सय्या पर श्रद्धा-सुमन बन
आत्म-शांति का हिस्सा बन जाता
रोज घरों में बड़े-बुजुर्गों के आशीष से
सजकर, सर की चोटी पर जगह पाता
माली मन्द-मन्द मुस्काता
कितना खुश होता…..
प्यार की कसिस में आकर
तोड़ भी दे कोई डाली से
तो माँ धरनी में मिल मिट्टी बन जाता
कितना खुश होता है माली
बेच मुझे गुजर-बसर को
मन्द मन्द मुस्काता जाता
कितना खुश होता…..
मेरी भी अंतिम इच्छा है “तुराज”
प्रभु के चरणों की धूल बन कर
उनमें ही रम जाऊं, मर जाऊँ-मिट जाऊँ
सदा के लिए अमर हो जाऊं।
“तुराज़”…. ✍
Beautiful ❣️💞